यूपी पुलिस ने यादवों और अल्पसंख्यकों को ओबीसी से बाहर निकाल दिया!



कोरोनावायरस के संक्रमण तो चल ही रहा है. उसमें यूपी पुलिस ने कमोबेश एक और छोटी-सी गड़बड़ी कर दी. यादवों को ओबीसी की लिस्ट से बाहर कर दिया. उन्हें एक अलग कैटेगरी ’अहिर’ दे दिया. अल्पसंख्यक नाम से अलग कैटेगरी बना दी. मामला आया तो सफ़ाई आयी. ग़लती से मिस्टेक हो गया.


मामला जानिए. यूपी में कहां की पुलिस ने ऐसा किया? मीरजापुर पुलिस ने. 3 अप्रैल 2020. मीरजापुर के एसपी ने सभी थानाध्यक्षों को लेटर लिखा. कुल 16 थाने. कहा गया कि सभी थानों पर मुख्य आरक्षी, आरक्षी, महिला मुख्य आरक्षी और महिला आरक्षी की सूची जातिगत और संख्यागत आधार पर तैयार की गयी है. मतलब अमुक जाति के कितने आरक्षी एक थाने पर मौजूद हैं, इसका ब्यौरा. सब थानों को ईमेल से लेटर और ये लिस्ट भेजी गयी. थानेदार लोगों से कहा गया कि अपने यहां की संख्या से मिलान कर लीजिए. कि ये सब डेटा सही है या नहीं. 




मीरजापुर पुलिस ने ये लेटर लिखा. और लेटर में थीं दो नए तरीक़े की जातियां,


ये जो लिस्ट थी, वही गड़बड़ थी. क्यों गड़बड़ थी? क्योंकि इसमें जातियों के पांच वर्ग बनाए गए थे. सामान्य, पिछड़ा यानी ओबीसी, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक और अहिर यानी यादव. जाति के पांच वर्गों की ये लिस्ट सामने आ गयी. बवाल होने लगा. प्रदेश सरकार पर आरोप लग गए. कहा गया कि वो यादवों को ओबीसी कैटेगरी से बाहर करके लड़ाई करवाना चाहती है. साथ ही इस लिस्ट में अल्पसंख्यकों का अलग खाना बनाया गया था. उस पर भी सवाल हुए. देखिए नीचे लिस्ट की बानगी : 




पुलिस की लिस्ट जिसमें ‘अहिर’ और ‘अल्पसंख्यक’ दो अलग-अलग जातियां हैं.


अब कुछ ही घंटे बीते. मीरजापुर पुलिस ने लप्प से एक और लेटर नत्थी कर दिया. कहा गया,


“उक्त सूचना के प्रोफ़ार्मा में सहबन लिपिकीय त्रुटि”— मतलब क्लेरिकल एरर — “हो गयी है. उक्त सोचना की आवश्यकता नहीं है. अतः निर्देशित किया जाता है कि संदर्भित आदेश को शून्य मानते हुए सूचना प्रेषित न किया जाए.”




नए लेटर में कहा गया कि क्लेरिकल एरर. और कहा गया कि पुराना वाला नहीं चलेगा.


मतलब पुलिस अब कह रही थी कि आदेश के समय पढ़ाई-लिखाई में गड़बड़ी हो गयी थी. इस वजह से ऐसा आदेश जारी हुआ. लेकिन इस आदेश में ये साफ़ नहीं था कि पुलिस किस चीज़ को क्लेरिकल एरर मान रही थी? संख्या को या जाति के खांचे को? हमने मीरजापुर के पुलिस अधीक्षक धरम वीर सिंह से फ़ोन पर बात की. हमने पूछा कि क्या ‘अहिर’ और ‘अल्पसंख्यक’ अलग-अलग बनाने का फ़ैसला क्यों लिया गया. उन्होंने सफ़ाई दी,


“क्लेरिकल एरर था. इस संबंध में कुछ ही घंटों में नया आदेश जारी कर दिया गया था. वो आदेश और वो पत्र निरस्त कर दिया गया है.”


यानी बाक़ायदे सूची बनी. जाति के दो नए खाने बने. थानों को भेजा गया. फिर कहा गया कि क्लेरिकल एरर है. 


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