कई वर्षों से विभिन्न राज्यों में रह रहे प्रवासियों के बिहार लौटते ही गांवों का माहौल अचानक बदलता दिख रहा है। घर-जमीन व परिसंपत्तियों पर उनकी अनुपस्थिति में उनके ही बंधु-बांधवों ने कब्जा जमाया हुआ था। लौटने के बाद प्रवासियों ने अपने हक के लिए आवाज उठानी शुरू कर दी है। लिहाजा परिवार में तनातनी का माहौल उत्पन्न हो गया है। पिछले 12 दिनों में जमुई के सिर्फ सोनो तथा चरकापत्थर थानों में ऐसे पांच मामले सामने आ चुके हैं। हालात यह है कि प्रवासियों के लिए कोरोना ने सामाजिक त्रासदी की पृष्ठभूमि तैयार कर दी है। इससे आने वाले कुछ महीनों में गांव का माहौल तेजी से बिगडऩे की आशंका है।
दरअसल, कोरोना संकट से जूझ रहे बड़ी संख्या में बिहार लौटने वाले प्रवासी मजदूरों को गांवों में भी अलग-थलग रहने को मजबूर होना पड़ रहा है। महामारी से डरे-सहमे उनके स्वजन उनसे दूरी बनाए हुए हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण के डर से ग्रामीणों द्वारा किए जा रहे दोयम दर्जे के व्यवहार से भी वे आहत हो रहे हैं। उनके हिस्से के मकान के ध्वस्त हो जाने से उनके रहने के ठौर नहीं मिलने तथा उनकी संपत्ति की अमानत में खयानत जैसे मामले को लेकर भी तनातनी का माहौल उत्पन्न हो गया है।
प्रवासियों के समक्ष आवास का संकट
संयुक्त परिवार में रहने वाले ऐसे ही कुछ प्रवासी मजदूरों के समक्ष आवास की समस्या उत्पन्न हो गई है। यहां के लोग पिछले कई वर्षों से बीवी -बच्चों के साथ अन्य प्रदेशों में रह रहे थे। लिहाजा गांव में उनके हिस्से के पुश्तैनी घर या तो ढह गए हैं या जीर्ण शीर्ण अवस्था में है। ऐसी स्थिति में कोरोना के भय से उन्हें उनके सगे भाई, स्वजन व गोतिया तक अपने साथ रखने को तैयार नहीं हो रहे हैं। इधर, प्रवासी मजदूरों की शिकायत है कि गांव लौटने पर उनके प्रति सामाजिक रूप से नकारात्मक दृष्टि अपनाई जा रही है। उन्हें यह लग ही नहीं रहा है कि यह उनका अपना गांव है। कुछ गांवों की स्थिति तो ऐसी हो गई कि बाहर से आए बेटे से मां, पति से पत्नी तथा भाई से भाई ने भी कुछ दिनों तक के लिए दूरी बना ली है।
पिछले 12 दिनों में पांच मामले दर्ज
कोरोना के कारण गांव को लौटे प्रवासियों के साथ उनके ही परिवार वाले बेगाने की तरह सलूक कर रहे हैं। भाई-भाई, चाचा-भतीजे जैसे रिश्तों में भी जमीन, घर व संपत्ति विवाद को लेकर दरार आ गई है। पिछले 12 दिनों में सोनो तथा चरकापत्थर थाने में ऐसे ही पांच मामले दर्ज कराए गए हैं।
मामला नंबर एक
नैयाडीह के रामफल यादव पिछले 12 वर्षों से बेंगलुरु में रहते हैं। पिछले 12 मई को वे दो बेटे, एक बेटी व पत्नी के साथ गांव लौटे। उनके भाइयों ने उन्हें पुश्तैनी घर का वह हिस्सा उनके हवाले कर दिया जो रहने लायक ही नहीं था। उन्होंने काफी प्रयास किया कि उन्हें मकान का वह हिस्सा मिले जो पूर्व में उनके हिस्से में था, लेकिन भाइयों ने उन्हें दुत्कार दिया। लिहाजा मामला थाने तक जा पहुंचा।
मामला नंबर 2
सिकंदराबाद से आठ वर्षों बाद बच्चों के साथ लौटे मुहम्मद नियाज की हालत भी कुछ ऐसी है। उनके हिस्से के पुश्तैनी घर उनके तीन भाइयों ने कब्जा किया हुआ है। ऐसी स्थिति में उन्होंने थाने में आवेदन देकर अपनी संपत्ति व सुरक्षा की गुहार लगाई है।
मामला नंबर 3
थमहन पंचायत के अशोक तूरी पिछले छह वर्षों से सपरिवार हरियाणा में रहते थे। कोरोना के कारण 10 दिन पहले वे सपरिवार गांव लौटे हैं। उन्होंने उस समय बनवाए अपने इंदिरा आवास को बड़े भाई के हवाले कर दिया था। गांव लौटने पर अशोक ने देखा कि उसका घर ढह चुका है। शेष भाग पर उनके भाइयों ने कब्जा कर रखा है। उनके द्वारा इस मामले की लिखित जानकारी बुधवार को थाने में दी गई है।
0 Comments