चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर पीएम ने किया नमन
कल यानी 23 जुलाई को चंद्रशेखर आजाद की 114वीं जन्म जयंती थी. देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वाले क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद जब पहली बार अंग्रेजों की कैद में आए तो उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी गई थी, लेकिन वह देश को आजाद देखना चाहते थे, और देश की खातिर वंदे मातरम् बोलते हुए पीठ पर कोड़े खाते रहे. आपको बता दें, लोकमान्य गंगाधर तिलक की भी आज जयंती है. दोनों की जयंती पर आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करते हुए दोनों को श्रद्धाजंलि दी है.
आइए जानते हैं चंद्रशेखर आजाद के बारे में कुछ खास बातें.
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को हुआ था. उनका जन्म मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा में हुआ था. 1920 में 14 वर्ष की आयु में चंद्रशेखर आजाद गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़े थे.
जानें- कैसे आजाद पड़ा नाम
चंद्रशेखर जब 14 साल के थे, तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. जज के समक्ष प्रस्तुत किए गए. यहां जज ने जब उनका नाम पूछा तो पूरी दृढ़ता से उन्होंने कहा कि आजाद. पिता का नाम पूछने पर जोर से बोले, 'स्वतंत्रता'. पता पूछने पर बोले- जेल. इस पर जज ने उन्हें सरेआम 15 कोड़े लगाने की सजा सुनाई. जिसके बाद से उन्हें देशवासी आजाद के नाम से पुकारने लगे.
चंद्रशेखर आजाद की निशानेबाजी बचपन से बहुत अच्छी थी. इसकी उन्हें अच्छी समझ थी. उन्होंने इसकी ट्रेनिंग बचपन में ही ले ली थी. 1922 में चौरी चौरा की घटना के बाद गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया तो देश के तमाम नवयुवकों की तरह आजाद का भी कांग्रेस से मोहभंग हो गया. जिसके बाद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल, योगेशचन्द्र चटर्जी ने 1924 में उत्तर भारत के क्रांतिकारियों को लेकर एक दल हिंदुस्तानी प्रजातांत्रिक संघ का गठन किया. चन्द्रशेखर आज़ाद भी इस दल में शामिल हो गए. चंद्रशेखर आजाद ने 1928 में लाहौर में ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर एसपी सॉन्डर्स को गोली मारकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया था.
आजाद हैं, आजाद रहेंगे...
चंद्रशेखर आजाद कहते थे कि 'दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे' उनके इस नारे को एक वक्त था कि हर युवा रोज दोहराता था. वो जिस शान से मंच से बोलते थे, हजारों युवा उनके साथ जान लुटाने को तैयार हो जाता था.
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