मामा ने कहा बेटा किराए का वाहन कर लो, दोस्त बोला ट्रक है तो। ट्रक पलटा, कुप्पों में दबकर दो बच्चों समेत दंपती की मौत।
घटनापूर्व अक्सर नियति व्यक्ति को सावधान जरूर करती है। देवास जिले के सोनकच्छ निवासी वीरेंद्र मिजाजी के साथ भी रविवार को ऐसा ही हुआ था। जबलपुर तक ट्रेनें न चलने के बावजूद वीरेंद्र की पत्नी पूजा हर कीमत में रक्षाबंधन पर जबलपुर के दीनदयाल चौक स्थित मायके पहुंचकर भाइयों की कलाई पर स्नेह का बंधन बांधने के लिए आतुर थी। भाई-बहन के बीच स्नेह बंधन में पति वीरेंद्र भी रोड़ा नहीं बनना चाहते थे।
वे हंसी-खुशी पत्नी-बच्चों के साथ रविवार को जबलपुर जाने की तैयारी में थे। इनके मामा राधेश्याम बजाज ने इनसे किराए का वाहन करने के लिए जोर भी डाला था, लेकिन वीरेंद्र पड़ोस के रहने वाले दोस्त के आग्रह को ठुकरा नहीं सके। दोस्त ने कहा कि ट्रक शहपुरा तक तो जा रहा है, इसी में सोते हुए चले चलो। वीरेंद्र सपरिवार इसमें सवार हो गए, लेकिन मंजिल तक नहीं पहुंच सके। ट्रक पर सोते-सोते ही पूरे परिवार के प्राण पखेरू उड़ गए।
पांच भाइयों में इकलौती बहन थी पूजा
वीरेंद्र मिजाजी की पत्नी पूजा जबलपुर के दीनदयाल चौक की निवासी थीं। बताया जाता है कि वे अपने घर में पांच भाइयों के बीच अकेली बहन थीं, इसलिए सब उन्हें बेहद प्रेम करते थे। लॉकडाउन के कारण पिछले चार माह से देवास-जबलपुर के बीच ट्रेनें बंद रहने के बावजूद वे हर कीमत पर रक्षाबंधन मनाने घर पहुंचना चाहती थीं। लेकिन, इन्हें क्या पता था कि वे जिस ट्रक में सवार होकर हंसी-खुशी भाइयों के घर जा रहीं थीं, वह उनका काल बन जाएगा। मंजिल के पहले ही उनका सफर हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।
नांदनेर की घटना ने सोनकच्छ, सिहोर से लेकर जबलपुर के परिवारों को आंसुओं के समंदर में डुबोकर रख दिया। पूजा के पांचों भाइयों के लिए ये रक्षाबंधन जीवन में न भूलने वाला असहनीय पीड़ा वाला दिन बनकर रह गया। जिस बहन की डोली उठवाकर उन्होंने हंसी-खुशी घर से विदाई दी थी, उसी बहन व उसके परिवार की अर्थी को उन्हें कांधा देना पड़ गया।
बचपन से मामा ने ही पाला-पोसा, गृहस्थी बसवाई
वीरेंद्र मिजाजी के माता-पिता सिहोर जिले के रहने वाले हैं। इनके पिता ओमप्रकाश मिजाजी अनाज के क्रय-विक्रय का काम करते हैं। वीरेंद्र जब एक साल के थे, तभी इनके मामा राधेश्याम बजाज ने इन्हें गोद ले लिया था। इनकी पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ शादी भी मामा ने कराई। ये मामा के साथ ही रहते थे।
वीरेंद्र की सोनकच्छ में किराना व जनरल स्टोर्स हैं, जबकि इनके छोटे भाई हितेंद्र माता-पिता के साथ रहते हैं। सोनकच्छ के प्रतिष्ठित परिवारों में इनकी गिनती होती थी। यहां के लोग इन्हें वीरेंद्र मिजाजी नहीं बल्कि बजाज सरनेम से जानते थे। समूचे सोनकच्छ तहसील में वीरू बजाज के नाम से ख्यात वीरेंद्र मिलनसारिता के साथ-साथ हंसमुख स्वभाव के थे। समाजसेवा के साथ-साथ सभी धर्मों में इनका भरोसा था। यही वजह रही कि जैसे ही इनके परिवार की असमय मौत की खबर सोनकच्छ में फैली, पूरा क्षेत्र शोकमय हो गया।
बच्चों को सभी धर्मों की दिला रहे थे शिक्षा
नांदनेर के हादसे में वीरेंद्र का पूरा परिवार खत्म हो गया। इसमें दो वे मासूम चेहरे थे, जिनके लिए इनके पिता की चाहत थी कि वे सभी धर्मों का ज्ञान रखें। उसका आदर करें। रोते-बिलखते वीरेंद्र के मामा राधेश्याम ने नईदुनिया को बताया कि वीरेंद्र के दोनों बच्चे लक्ष्य व मयंक क्रमश छठी व चौथी कक्षा में मिशनरी स्कूल में अध्ययनरत थे।
ये दोनों बच्चे मदरसे में उर्दू पढ़ने भी जाते थे। इसके अलावा सिख, जैन आदि धर्मों का ज्ञान भी प्राप्त कर रहे थे। इनके पिता की चाहत थी कि उनके बेटे सभी धर्मों के बारे में जानकर उनकी बातों को अपने जीवन में उतारें, ताकि बड़े होकर दोनों सुशील व सहृदय वाले नागरिक बन सकें। पूरा परिवार वीरेंद्र की इस नेकख्याली का समर्थन करता था। लेकिन, नांदनेर की घटना ने पलभर में ही सब कुछ खत्म कर दिया।
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