जमीन से जमीन पर 800 किलोमीटर तक मार कर सकने वाली शौर्य मिसाइल लक्ष्य भेदने में अचूक है।
नई दिल्ली परमाणु शक्ति संपन्न शौर्य मिसाइल के परीक्षण ने ‘के मिसाइल परिवार’ को और ताकतवर बना दिया है। इस परिवार का उद्देश्य देश में थल, जल व हवा से परमाणु शक्ति वाले हथियारों के प्रक्षेपण की क्षमता हासिल करना है। भारत ने हाल ही में अपनी परमाणु क्षमता वाली शौर्य मिसाइल का सफल ट्रायल किया है। देश के पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन के नाम से पहचाने जाने वाले डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के सम्मान में इस मिसाइल फैमिली का कोडनेम ' K'रखा गया है। इन्हें न्यूक्लियर सबमरीन की अरिहंत श्रेणी से लॉन्च किया जाता रहा है।
के मिसाइल परिवार
इसमें प्रारंभिक तौर पर सबमरीन लांच्ड बैलिस्टिक मिसाइल यानी एसएलबीएम शामिल की गई हैं। इन्हें रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ ने स्वदेशी तकनीक से विकसित किया है। परिवार व उसकी मिसाइलों का नामकरण देश के मिसाइल मैन व पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर किया गया है।
ऐसी हैं मिसाइलें
पनडुब्बियों से प्रक्षेपित होने वाली ये मिसाइलें जमीन से लांच की जाने वाली मिसाइलों के मुकाबले हल्की, छोटी और छिपाए जाने लायक होती हैं। इन्हें अरिहंत श्रेणी के परमाणु शक्ति संपन्न प्लेटफॉर्म से लांच किया जा सकता है। डीआरडीओ इनमें से कुछ के थल व हवा से प्रक्षेपित किए जाने वाले संस्करणों का भी विकास कर रहा है।
लक्ष्य भेदने में अचूक
परिवार में गत दिवस शामिल हुई व जमीन से जमीन पर 800 किलोमीटर तक मार कर सकने वाली शौर्य मिसाइल लक्ष्य भेदने में अचूक है। यह एसएलबीएम के-15 सागरिका का थल संस्करण है। यह रडार को चकमा देने में भी सक्षम है। इससे पहले भारत के-4 मिसाइल को कई बार लांच कर चुका है, जिसकी मारक क्षमता 3,500 किलोमीटर है। बताते हैं कि 5,000-6,000 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली के-5 व के-6 मिसाइलें विकास के अंतिम दौर में हैं।
एसएलबीएम का सामरिक महत्व
चीन व पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण रिश्तों के बीच एसएलबीएम का महत्व और बढ़ जाता है। भारत की रणनीति है कि वह किसी पर पहले वार नहीं करेगा। इसका नाजायज फायदा उठाते हुए कोई दुश्मन हमारे देश पर हमला करता है तो उस स्थिति में हमारी पनडुब्बियों व उनमें लगे परमाणु हथियारों को कोई नुकसान नहीं होगा। इन परमाणु शक्ति संपन्न पनडुब्बियों से दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब भी दिया जा सकेगा। वैसे तो अरिहंत में के-15 मिसाइल पहले से ही तैनात है, लेकिन उसमें के-4 को भी तैनात किए जाने की योजना है।
कुछ खास
भारत पहले भी कई बार K-4 मिसाइलों का सफल परीक्षण कर चुका है, जिनकी रेंज 3500 किलोमीटर तक रही है। मीडिया जानकारी के मुताबिक K-5 और K-6 कोडनेम से तैयार की जाने वाली मिसाइलों की रेंज 5-6 हजार किलोमीटर तक होगी। K-15 और K-4 मिसाइलों का शुरूआती विकास कार्यक्रम 2010 के दशक में शुरू हो गया था। आपको बता दें कि भारत के मिसाइल प्रोग्राम की नीति शुरुआत से ही पहले हमला न करने की रही है। भारत द्वारा विकसित की जा रही और अब तक तैयार की जा चुकी मिसाइलें इसी नीति के तहत हैं। लेकिन यदि भारत की सीमाओं की तरफ कोई भी आंख उठाकर देखने की हिम्मत करेगा तो भारत शांत बैठा नहीं रहेगा। भारत हर बार अंतरराष्ट्रीय मंच से इस बात को कहता रहा है कि वो किसी भी तरह के विवाद में नहीं पड़ना चाहता है और विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने की बात करता है। देश की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए त्रिस्तरीय न्यूक्लियर शक्ति के विकास में इन मिसाइलों का होना महत्वपूर्ण है। पानी के अंदर न्यूक्लियर क्षमता से लैस हमलावर मिसाइलें होने से भारत के पास परमाणु शक्ति के लिहाज़ से ताकत दोगुनी हो जाती है। इन मिसाइलों की अहमियत यह भी है कि ये न केवल पहले हमले में सर्वाइव करती हैं बल्कि जवाबी हमले में भी इस्तेमाल की जा सकती हैं।
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