38 लाख रुपए खर्च कर प्लेन से फसल काटने को बुलाए गए मजदूर, प्रति घंटा 1430 रुपए जेब में

फसल कटाई का बुलावा। सूट-बूट और हवाई जहाज का सफऱ। एक घंटा काम और 1430 रुपये पॉकेट में। जब ऐसी मजदूरी करनी हो तो ठाठबाट लाजिमी है। कोरोना लॉकडाउन की वजह से कई ऐसी जानकारियां सामने आ रही हैं जो हैरतअंगेज हैं। हाल ही में 150 मजदूरों को हवाई जहाज से बुलाया गया। इनकी हवाई यात्रा पर करीब 38 लाख रुपये खर्च किये गये। खेतों तक पहुंचाने के लिए कई लक्जरी बसों का इंतजाम किया गया। लॉकडाउन के बीच इतने मजदूरों को जुटाने के लिए कागजी भागदौड़ भी खूब करनी पड़ी। आखिर करते भी तो करते करते। अगर समय पर फसल की कटाई नहीं होती तो करोड़ों का नुकसान होता। कीमती फसल खेतों में सड़ जाती और मेहनत मिट्टी में मिल जाती। मन मार कर पैसा खर्च करना पड़ा।

प्लेन से फसल काटने आये मजदूर

जैसे अभी भारत में रबी फसल की कटाई चल रही है वैसे ही इस समय इंग्लैंड में फल और सब्जियों को तोड़ने का मौसम शुरू हो चुका है। फल और सब्जियों को तोड़ने के लिए इंग्लैंड में 80 हजार दक्ष मजदूरों की जरूरत है। लेकिन लॉकडाउन और क्वारेंटाइन की वजह से इतने मजदूर मिल नहीं पा रहे हैं। कोरोना के कहर से खेती भी प्रभावित है। इंग्लैंड के पूर्वी एंग्लिया में करीब 7 हजार हेक्टेयर में कीमती फल, सब्जियों और सलाद के पत्तों की खेती होती है। ब्रिटेन में कई ऐसी फर्म हैं जो फल और सब्जियों की उन्नत खेती करती हैं। इनमें जी फ्रेस एक प्रमुख नाम है। कोरोना के पहले भी इंग्लैंड में फल-सब्जी तोड़ने वाले मजदूरों का टोटा था। तब मजदूरों की कमी पूर्वी यूरोप के देशों से पूरी की जाती थी। इंग्लैंड की प्रसिद्ध फूड फर्म जी फ्रेस ने गुरुवार को रोमानिया से 150 मजदूर बुलाये। उनके एयर टिकट पर कुल 40 हजार पाउंड यानी करीब 38 लाख रुपये खर्च किये। लॉकडाउन में यात्रा के कठिन प्रतिबंधों में मजदूरों का मिलना मुश्किल हो रहा था। फसल तैयार थी। ऐसी स्थिति में जी फ्रेस के पास मजदूरों को बाहर से बुलाने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं था।

सूट-बूट और ठाट

गुरुवार को जब लंदन के स्टैन्सस्टेड एयरपोर्ट पर रोमनिया के 150 कृषि मजदूर उतरे तो उनकी तहजीब और वेशभूषा देखने लायक थी। वे एयरपोर्ट पर फिजिकल डिस्टेंडिंग का पालन कर रहे थे। हाथों में ग्लब्स और चेहरे पर मास्क। बड़े-बड़े ट्रॉलीबैग। कोट, पतलून, जिंस और बूट में ऐसे फब रहे थे जैसे कि पर्यटक हों। स्त्री और पुरुष किसी एथलिट की तरह लग रहे थे। एयरपोर्ट से खेत तक ले जाने के लिए इनके लिए आरामदेह बसों का इंतजाम किया गया था। रोमानिया से आने वाले ये कृषि कामगार अपने फन में माहिर हैं। सलाद के पत्तों को तोड़ने के लिए विशेष सावधानी की जरूरत होती है। वैसे तो इंलैंड में मशीन से भी हारवेस्टिंग की जाती है लेकिन इसके लिए भी अनुभव और योग्यता की जरूरत है। इंग्लैंड में इतने दक्ष कामगार नहीं मिलते। पहले यहां कार और बसों से कमागारों का लाया जाता था। लेकिन लॉकडाउन के यात्रा प्रतिबंधों ने इस काम को मुश्किल बना दिया। आखिरकार जी फ्रेस को इनके लिए हवाई यात्रा का इंतजाम करना पड़ा। जब ये हवाई जहाज में बैठे तब उनके स्वास्थ्य की जांच की गयी। विमान में एक सीट छोड़ कर बैठने की व्यवस्था थी। लंदन पहुंचने के बाद फिर इनकी जांच हुई। जांच में सही जाने के बाद उन्हें बस में बैठ कर खेतों पर जाने की इजाजात दी गयी। उनके आने और स्वास्थ्य जांच का खर्च जी फ्रेस कंपनी ने वहन किया।

1430 रुपये प्रतिघंटा के हिसाब से मजदूरी

इन कामगारों को रहने के लिए खेतों के पास ही अस्थायी घर बनाये गये हैं। फसल कटाई के समय भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना है। जो एक परिवार के सदस्य हैं वे एक साथ रहेंगे और कोरोना से बचाव के उपायों का ख्याल रखेंगे। जो दक्ष मजदूर हैं उनको एक घंटे के लिए 15 पाउंड यानी 1430 रुपये की दर से मेहनताना मिलेगा। 25 साल से अधिक के मजदूरों को 8.72 पाउंड यानी करीब 831 रुपये प्रतिघंटा के हिसाब से पैसा मिलेगा। पिछले 30 साल में इंग्लैंड की खेती में भारी बदलाव आया है। खेती के लिए सेटेलाइट, ड्रोन और रोबोट का इस्तेमाल होने लगा है। कृषि मजदूर कम मिलते हैं। मशीनों का चलन बढ़ गया है। अब तो इंग्लैंड में किसान रोबोटिक टैक्टरों का इस्तेमाल करने लगे हैं। वे घर बैठे खेत जोत लेते हैं। ड्रोन से अपने खेतों की रखवाली करते हैं। सेटेलाइट से मिल रही तस्वीरों से वे मौसम और खेती में तालमेल बैठाते हैं। इतना कुछ होने पर भी वहां की खेती में कुछ ऐसी कीमती सब्जियां, पत्तियां और फल हैं जिन्हें मशीन से नहीं तोड़ा जा सकता। इसके लिए इंसान की जरूरत पड़ती है। रोमोनिया से आये कामगार इसी जरूरत का हिस्सा हैं। जब इतना पैसा मिलेगा तो भला कौन नहीं काम करना चाहेगा।

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