इन तथ्यों व आंकड़ों से समझें देश को बेकार की बातों में क्यों उलझा रहे हैं पीएम मोदी




3 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रिकॉर्डेड वीडियो के जरिये देश को संबोधित किया. विषय कारोना वायरस था. जिससे पूरी दुनिया जूझ रही है. डरी-सहमी है.


प्रधानमंत्री 3 अप्रैल को देश को संबोधित करेंगे, इसकी सूचना देश को 2 अप्रैल को ही मिल गयी थी. सभी को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री अपने संदेश में गरीबों-बेरोजगारों के लिए रोटी-कपड़ा की बात करेंगे. वह बतायेंगे सरकार ने क्या-क्या व्यवस्था की है. कोरोना वायरस से डॉक्टरों व स्वास्थ्य कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए कब तक पर्याप्त संसाधन उपलब्ध करा दिये जायेंगे.


टेस्टिंग के लिए सर्वसुलभ व्यवस्था कैसे की गयी है. कम से कम उनके समर्थक भी उम्मीद कर रहे थे कि वह पैदल यात्रियों के लिए दो शब्द जरुर कहेंगे.


पर, प्रधानमंत्री ने देश से कहा क्या. 5 अप्रैल की रात 9.00 बजे घरों की लाईट बंद करें और “ दीया-मोमबत्ती जलायें”


संदेश खत्म होते ही ट्विटर, फेसबुक पर प्रधानमंत्री मोदी को कोसा जाने लगा. तब बीजेपी आइटी सेल और मोदी समर्थकों ने भी मोर्चा संभाल लिया. और यह बताने लगे कि कैसे दीया-मोमबत्ती जलाने के लाभ होंगे. तरह-तरह के दकियानुसी तर्क दिये जाने लगे.


खैर, मैं कुछ तथ्य और आंकड़े बता रहा हूं. जो प्रमाणिक हैं औऱ यह बताने के लिए काफी हैं कि वर्तमान सत्ता किस तरह कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने में विफल रही. कैसे समय पर जरुरी कदम नहीं उठाये गये. जिसका नुकसान देश को उठाना पड़ रहा है. खासकर गरीब और मजदूर तबके को.


तथ्य-01




इस खबर के मुताबिक, केंद्र सरकार ने कोरोना आपदा से निपटने के लिए देश के 736 जिलों में से 410 जिलों के डीसी के साथ एक सर्वे किया है. जिसमें जिलों के डीसी से पूछा गया था कि कोरोना वायरस से लड़ने की भारत की क्षमता कितनी है.


रिपोर्ट के तथ्यः


–     71 प्रतिशत जिलों के डीसी ने कहा कि कोरोना से लड़ने के लिए भारत के पास पर्याप्त वेंटिलेटर्स नहीं हैं.


–     60 प्रतिशत जिलों के डीसी ने कहा कि जिलों के अस्पतालों में पर्याप्त बेड नहीं हैं.


–     34 प्रतिशत जिलों के डीसी का मानना है कि कोरोना से मुकाबला करने के लिए स्थानीय अस्पतालों में पर्याप्त सुविधा नहीं है.


इन आंकड़ों से आप समझ सकते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार के बाबुओं को देश की स्वास्थ्य सुविधा के बारे में पता है. उन्हें पता है कि स्वास्थ्य सुविधाएं इतनी लचर है कि अगर ज्यादा मरीज आ गये (ज्यादा टेस्ट कराने की स्थिति में) तो मरीजों को रख नहीं पायेंगे. यही कारण है कि बहुत सारे जिला अधिकारियों ने कहा कि लॉक डाउन को बढ़ाया जाये.


पर, अब यह भी मुश्किल है. देश के केबिनेट सेक्रेटरी राजीव गौबा कह चुके हैं. ऐसा कोई इरादा नहीं है.


तथ्य-02


2 अप्रैल को प्रधानमंत्री ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये देश के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की. बैठक बाद मीडिया को कामचलाऊ सूचनाएं ही दी गयीं. लेकिन कुछ सूचनाएं बाहर आ गयीं. जिसमें एक सूचना बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से संबंधित है.


बैठक में नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री से कहा कि डॉक्टरों के लिए 5 लाख पीपीई किट की मांग की गयी थी, मिला सिर्फ 4000. कोरोना से पीड़ित गंभीर मरीजों के लिए 100 वेंटिलेटर भी मांगे थे, एक भी नहीं मिला.




तथ्य-03


पिछले दिनों झारखंड के अखबारों में खबर छपी थी. कोरोना संकट के कारण चाईबासा के चिकित्सक दंपत्ति ने इस्तीफा दे दिया. एक खबर दिल्ली से भी है. दिल्ली के बाड़ा हिंदु राव अस्पताल के कई डॉक्टर्स और नर्सों ने इस्तीफा दे दिया. अस्पताल प्रबंधन ने सभी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की बात कही है.


इन इस्तीफों की वजह अस्पतालों में PPE किट का अभाव है. इसके अलावा भी डॉक्टर्स व अन्य स्वास्थ्य कर्मी कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों का इलाज करने से डर रहे हैं. क्योंकि संक्रमण का खतरा उन्हें भी है. इस खबर को लिखे जाने तक सूचना है कि कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों का इलाज के दौरान करीब 50 डॉक्टर व स्वास्थ्यकर्मी संक्रमण के शिकार हो गये हैं.


सवाल यह है कि यह स्थिति क्यों उत्पन्न हुई. क्योंकि मोदी सरकार ने समय पर जरुरी कदम नहीं उठाये. चुनाव लड़ने, ट्रंप का स्वागत करने और सरकार गिराने-बनाने में व्यस्त रही. इस सरकार में हालात इतने खराब हैं कि 19 मार्च तक देश में बन रहे पीपीई किट, मास्क व अन्य जरुरी सामानों का निर्यात किया जाता रहा. जबकि डब्लूएचओ ने करीब दो माह पहले ही भारत को अलर्ट कर दिया था.


तथ्य-04


ब्रिटेन की आबादी करीब 6 करोड़ है. वहां की सरकार हर दिन 12,750 लोगों का कोरोना टेस्ट कर रही है. इसके बाद भी वहां की मीडिया सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहा है. भारत में मेन स्ट्रीम मीडिया ने इस पर चुप्पी साध ली है.


भारत की आबादी 130 करोड़ है. और यहां हम सिर्फ 3500 टेस्ट हर दिन कर पा रहे हैं. अब तक सिर्फ 47 हजार (आज-कल में कुछ हजार आंकड़े बढ़े होंगे) टेस्ट कर पाये हैं.  और देश की मेन स्ट्रीम मीडिया वाह-वाह कर रही है.


तथ्य-05


जब देशभर में लॉकडाउन लागू था. दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, यूपी (नोएडा), हरियाणा (गुड़गांव) से मजदूर पैदल ही घर के लिए निकल पड़े थे. उन्हें देखने वाला कोई नहीं था. एक खबर के मुताबिक, पैदल घर जाने के दौरान अब तक 68 लोगों की मौत हो चुकी है. दिल्ली के आनंद विहार बस टर्मिनल तक मजदूरों को लाने वाले चालकों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी. उस दौरान भी केंद्र सरकार के शीर्ष लोगों के इशारे पर खास राज्य के लोगों के लिए खास प्रबंध किये गये.




सवाल उठता है कि क्या इस देश में अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग कानून है.


इन तथ्यों को भी जानें


–     जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस को लेकर अलर्ट थी, तब हम सिर्फ एयरपोर्ट पर विदेशों से आने वाले लोगों का बुखार नापने में लगे रहे.


–     पूर्व की सरकार और वर्तमान मोदी सरकार ( पिछले 6 साल से सत्ता में हैं ) ने देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया.


–     3 अप्रैल को केंद्र सरकार ने साफ कह दिया कि मरकजी जमात पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि उनकी वजह से देशभर में कोरोना फैला. लेकिन केंद्र सरकार यह नहीं बताती कि मरकजी जमात को जुटने क्यों दिया.


लोगों को विदेश से आने क्यों दिया. जब 17 मार्च को ही तेलंगाना सरकार ने सूचना दे दी थी, इस जमात के लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं. तो केंद्र सरकार औऱ दिल्ली पुलिस ने किन कारणों से 10 दिन बाद 28 मार्च को निजामुद्दीन में कार्रवाई शुरु की. जमात के लोगों को क्यों देशभर में फैल जाने की छूट दी गयी.


इन तथ्यों का क्या मतलब निकलता है. हमारे रहनुमा इस बात को अच्छे से जानते हैं कि उन्होंने देश और आम लोगों के लिए कुछ नहीं किया है. सत्ता और पावर हथियाने के बाद ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की. जिससे विकट परिस्थिति में देश को बाहर निकाला जा सके.


हमारे रहनुमा यह भी अच्छी तरह समझते हैं कि लोगों को कैसे मुर्ख बनाया जाता है. कभी राज्य के मजदूरों के नाम पर, कभी धर्म के नाम पर तो कभी थाली पीटने के नाम पर. और अब दीया-मोमबत्ती जलाने के नाम पर. कोई संदेह नहीं कि रविवार को देशभर में दीया-मोमबत्ती जलाने का काम होगा. पर, इससे कोरोना खत्म नहीं होगा. दिन ब दिन हालात बदतर ही बनने का अंदेशा है.


मोदी जी के पास भी देश को बताने के लिए कुछ है नहीं. इमरजेंसी के परिस्थिति में इस्तेमाल किया जाने वाला आऱबीआई का रिजर्व फंड यह सरकार पहले ही खर्च कर चुकी है. अब पैसा है नहीं. देश की आर्थिक स्थिति पहले से डांवाडोल है. स्वास्थ्य सुविधा पहले से ही खराब है. टेस्टिंग की सुविधा नहीं है. फिर एक ही रास्ता बचता है- दीया-मोमबत्ती जलाओ.



देश में कोरोना वायरस का संकट गहराता जा रहा है. ऐसे में जरूरी है कि तमाम नागरिक संयम से काम लें. इस महामारी को हराने के लिए जरूरी है कि सभी नागरिक उन निर्देशों का अवश्य पालन करें जो सरकार और प्रशासन के द्वारा दिये जा रहे हैं. इसमें सबसे अहम खुद को सुरक्षित रखना है. न्यूज विंग की आपसे अपील है कि आप घर पर रहें. इससे आप तो सुरक्षित रहेंगे ही दूसरे भी सुरक्षित रहेंगे.

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