कोरोना से लड़ाई में भारत ने अपने सारे रिसोर्सेज झोंक दिए हैं. होटलों को हॉस्पिटल बनाया जा रहा है. रेल के डिब्बों को आइसोलेशन वार्डों में तब्दील किया जा रहा है. नेता संदेशवाहक बन रहे हैं. पुलिस ने पुलिसिंग के अलावा लोगों को घरों में रखने की ज़िम्मेदारी ले ली है. लेकिन कोरोना से लड़ने के लिए युद्ध स्तर की तैयारियों की बीच भारत का एक ताक़तवर रिसोर्स अभी भी अपनी जिम्मेदारियों से भागकर प्रोपेगैंडा फैलाने में लगा हुआ है. वो है दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी, भााजपा का आईटी सेल.
इस वक्त जब देश के बड़े विपक्षी नेता भी सत्ताधारी पार्टी के साथ खड़े नजर आते हैं, तब ऐसा लगता है कि आईटी सेल ने अपनी ही पार्टी और देश का दुश्मन बनने की कसम खा ली है. कोरोना महामारी के दौरान भी आईटी सेल ने राजनीति नहीं छोड़ी है. वो इस महामारी को भी एक राजनीतिक चुनाव की तरह देख रहे हैं जिसमें वो अधिकतम सफलता हासिल करना चाहते हैं. खुद गृहमंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि अब उनकी क्षमता इतनी हो गई है कि कोई भी संदेश कभी भी वायरल करा सकते हैं. प्रधानमंत्री मोदी भी अपने मन की बात में लोगों से कहते हैं कि इसे वायरल करिए. वायरल कराने से नेता भली भांति परिचित हैं, फिर आईटी सेल लोगों तक सही जानकारी क्यों नहीं पहुंचा रहा है?
भाजपा के आईटी सेल हेड अमित मालवीय की ही बात करें तो उनके ट्वीट्स हास्यास्पद और हैरतअंगेज हैं. वो हर रोज दो-तीन फेक खबरें फैलाते हैं और चार अन्य वेबसाइट्स के रिसोर्सेज उन फेक खबरों का खंडन करने में चले जाते हैं. मालवीय की ट्विटर टाइमलाइन पर कोरोना महामारी से जुड़ी गंभीर बातें कम हैं.
फरवरी के महीने में जब पूरी दुनिया से भारत में कोरोना महामारी के आने का खतरा बना हुआ था, आईटी सेल लगातार गोमूत्र और गोबर के फायदे गिना रहा था. लोगों के वॉट्सऐप पर इसी तरह की खबरें आ रही थीं कि गोमूत्र पीने से और गोबर से घर लीपने से कोरोना तो क्या, कोरोना का बाप भी पास नहीं फटक सकता. यही नहीं, इसको आयुर्वेदिक रंग देने के लिए तुलसी और नीम के पत्तों का भी इस्तेमाल किया जाने लगा. धर्म से जोड़ने के लिए ये संदेश फैलाया गया कि जिसके जितने बेटे हैं, उतने दिये जलायें तो कोरोना पास नहीं फटकेगा.
पर हुआ क्या? मार्च के महीने में कोरोना ने भारत में दस्तक दे ही दी. इससे पहले जनवरी और फरवरी में भारत में केसेज आए थे, पर उन्हें दूर की बीमारी की तरह माना गया. पूरा आईटी सेल तब ट्रंप की रैली और भारत की विश्वगुरू बनने की ताकत को प्रचारित करने में लगा हुआ था. मार्च में कोरोना भारत में फैलने लगा. लेकिन आईटी सेल की नजर में अभी भी ये दूसरे देशों की साजिश थी. जब तक कि सरकार ने पूरी तरह लॉकडाउन नहीं किया, आईटी सेल जनता को दिग्भ्रमित करने में लगा रहा. वॉट्सऐप पर इतने कैजुअल मैसेज भेजे जाते रहे मानो कोरोना किसी को छू ही नहीं सकता. इस बात की काफी संभावना है कि इस दुष्प्रचार के चलते जनता का भी नजरिया कैजुअल हो गया और बहुत से लोगों ने कोरोना को गंभीरता से लेना बंद कर दिया.
ये हरकत यहीं तक नहीं रुकी. जब प्रधानमंत्री मोदी ने जनता कर्फ्यू की मांग की और लोगों से ताली-थाली बजाने को कहा, आईटी सेल ने शंख की आवाज और थालियों के कॉस्मिक ताकत को इतना फैलाया कि स्वास्थ्य मंत्रालय को सफाई देनी पड़ गई. सरकार को कहना पड़ा कि ये सब बस स्वास्थ्य कर्मियों का मनोबल बढ़ाने के लिए किया गया है. इसका इन चीजों से कोई लेना देना नहीं है. जाहिर सी बात है कि आईटी सेल अब ऐसा मॉन्स्टर हो चुका है जो किसी के कंट्रोल में नहीं है.
अगर वो यहीं रुक जाते तो गनीमत थी. नेशनल लॉकडाउन की घोषणा के बाद दिल्ली समेत कई राज्यों से मजदूरों का पलायन शुरू हुआ. सरकार लगातार यही कह रही है कि मजदूरों को गलत जानकारी दी गई जिसकी वजह से ये हुआ, पर ये गलत जानकारी कौन दे रहा है? पार्टियों के आईटी सेल के अलावा जनता से इस तरह से कोई नहीं जुड़ा है. आजकल हर जानकारी आईटी सेल जनता में पहुंचा रहा है, सही या गलत. तो जाहिर सी बात है कि ये प्रोपैगैंडा भी ऐसे ही पहुंचा है.
क्या इन सेल्स की ये जिम्मेदारी नहीं थी कि मजदूरों को मिसगाईड करने के बजाय उन्हें सही जानकारी दें? कई जगह से ये बताया गया कि ये अफवाह उड़ी है कि बाहरी मजदूरों की बिजली दिल्ली सरकार ने काट दी है, ऐसी खबरों ने उन्हें और पैनिक कर दिया.
पर ये अभी भी नहीं मान रहे. जब से निजामुद्दीन में तबलीगी जमात की बेवकूफी से कोरोना केसेज फैलने की जानकारी सामने आई है, आईटी सेल लगातार मुसलमानों को बदनाम करने में लगा हुआ है. ये इस तरीके से इस खबर को पेश कर रहे हैं जैसे मुसलमान जान बूझकर कोरोना फैला रहे हैं. इसे ये प्रशासनिक चूक या धर्म की बेवकूफी नहीं मानते, बल्कि इसे एक समुदाय की नफरत के तौर पर पेश कर रहे हैं जिससे कि बाकी समुदायों में नफरत और बढ़े. कोरोना से देश लड़ रहा है, उस वक्त आईटी सेल घटिया राजनीति में लगा हुआ है. इससे हासिल क्या है? जाहिर सी बात है कि सुविधा संपन्न आईटी सेल नफरत पर ही पल रहा है. कंस्ट्रक्टिव काम करने में इसकी दिलचस्पी नहीं है. यही वजह है कि हर आंदोलन के बाद गांधीजी सारे कार्यकर्ताओं को सामाजिक काम में लगने की सलाह देते थे. वरना लोग हमेशा आंदोलन और चुनाव के मूड में रहते हैं.
आईटी सेल के लिए हर दिन चुनाव का दिन है. उन्हें हर मुद्दा चुनाव के लिए नजर आता है. इन्हें जनता से कोई लेना देना नहीं. संभवतः ये जॉम्बी हो चुके हैं. लगातार मिसइन्फॉर्मेशन फैलाना इनका मिशन बन गया है. भारत के समाज के लिए ये एक खतरा बन चुका है.
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