सौरव गांगुली भारतीय टीम के ऐसे कप्तान रहे जिन्होंने कई खिलाड़ियों की जिंदगी बदल दी, चाहे वो युवराज सिंह हो या फिर पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धौनी. या कह दें दिग्गज गेंदबाज हरभजन सिंह. इन सबको तराशने का काम सौरव गांगुली का था. इन्ही में से एक थे वीरेंद्र सहवाग, जिसकी तूफ़ानी बल्लेबाजी से अच्छे अच्छे गेंदबाजों का लाइन और लेंथ बिगड़ जाता था. कई ऐसे गेंदबाज थे जिन्हें लोग खेलना नहीं चाहते थे लेकिन सहवाग उन गेंदबाजों की भी बखिया उधेड़ दी थी.
उदाहरण के लिए अजंता मेंडिस, जिनकी उन्होंने खूब पिटाई की थी, अजंता मेंडिस वो गेंदबाज थे जो टीम इंडिया के लिए काल साबित होते थे लेकिन सहवाग उनकी गेंदों को बेखौफ होकर खेलते थे. लेकिन क्या आपको पता है सहवाग शुरुआत से ही ऐसे नहीं थे वो एक काम चलाऊ खिलाड़ी के तौर पर टीम में खेलते थे. जो कि थोड़ी बहुत गेंदबाजी कर लेता था और थोड़ी बहुत बल्लेबाजी. सहवाग ने अपना अंतराष्ट्रीय मैच 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ खेला था, लेकिन सहवाग का डेब्यू मैच बहुत खराब था. वो सिर्फ बल्लेबाजी में 1 रन ही बना पाए और गेंदबाजी में भी 3 ओवर में 35 रन लुटा दिए.
नतीजा ये हुआ कि सहवाग को टीम से बाहर कर दिया गया. लेकिन सहवाग ने फिर डेढ़ साल बाद अपने प्रदर्शन के बलबूते टीम इंडिया में फिर एंट्री की और जिम्बाब्वे के खिलाफ पहला मुकाबला खेला, पहले मैच में तो उनकी बल्लेबाजी की बारी नहीं आई लेकिन दूसरे मैच में जब आई तब भी वो कोई खास कमाल नहीं दिखा पाए और सिर्फ 19 रन बनाकर पवेलियन लौट गए. लेकिन सौरव गांगुली ने तब भी उनपर भरोसा बनाए रखा.
फिर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 25 मार्च 2001 को सहवाग ने अपने वनडे करियर की पहली हाफसेंचुरी ठोक दी. सहवाग की इस हाफसेंचुरी ने कप्तान सौरव गांगुली को बहुत प्रभावित किया. फिर 7 मैचों के बाद उन्होंने एक ऐसा फैसला लिया जिसे जानकर टीम इंडिया ही नहीं खुद सहवाग भी हैरान रह गए.
हैरानी की वजह थी उन्हें टीम में सलामी बल्लेबाज की जिम्मेदारी दी गयी थी, मौका था श्रीलंका में कोका कोला मैच का आयोजन होना, उस समय सचिन टीम में नहीं थे, पहले दो मैचों में तो गांगुली ने युवराज के साथ ओपनिंग तो कर लिया लेकिन मामला कुछ जमा नहीं फिर उन्होंने इसके बाद सहवाग से बात करके ट्रायल के तौर पर ओपनिंग करने उतरे. सहवाग बतौर ओपनर उस मैच में 54 गेंदों पर 33 रन की पारी खेलकर थोड़ी सी झलक जरूर दिखा दी लेकिन अगले 2 मैच वो पूरी तरह फ्लॉप रहे लेकिन सौरव गांगुली का भरोसा तब भी उन पर कायम था और उन्हें पूरी सीरीज में ओपनिंग उतारते रहे. 22 अगस्त 2001 को सहवाग ने न्यूजीलैंड के खिलाफ महज 70 गेंदों में 100 रन बनाकर तहलका मचा दिया.
सहवाग का ये प्रयोग काम कर गया और उसके बाद सहवाग बतौर ओपनर ही टीम इंडिया में खेले.
यहां तक कि सचिन के टीम में आने के बाद भी वो ओपनिंग करते रहे और सौरव गांगुली ने खुद न ओपनिंग उतरकर सहवाग को मौका देते रहे और वो खुद नंबर 3 पर बल्लेबाजी करते रहे.
वनडे में शानदार प्रदर्शन के बाद अब टेस्ट की बारी थी, सहवाग को साउथ अफ्रीका दौरे पर ब्लोमफोंटेन टेस्ट की प्लेइंग इलेवन में शामिल किया गया. इस मौके को सहवाग ने दोनों हाथों से भुनाते हुए अपने पहले ही टेस्ट के पहली पारी में ही 105 रन जड़ दिए और दूसरी पारी में 31 रनों का योगदान दिया. लेकिन उस शतकीय पारी की खास बात ये थी कि उन्होंने वो रन उस वक्त बनाए थे जिस समय टीम इंडिया तुरंत ही 4 विकेट गंवाकर संघर्ष कर रही थी. इस पारी के बाद सहवाग ने दुनिया को बता दिया था कि वो टेस्ट में भी अच्छी बल्लेबाजी करने का दम रखते हैं. उसके बाद तो सहवाग दिन प्रतिदिन रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड बनाते रहे. आज उन्हें दुनिया विश्व के सबसे सफल सलामी बल्लेबाजों की गिनती में रखती है.
आपको बता दें कि सहवाग ने अपने करियर में 104 टेस्ट में 8586 रन बनाए हैं, जिसमें 23 शतक भी शामिल है. उन्होंने दो बार तिहरे शतक ठोके. वनडे में भी सहवाग ने 8273 रन बनाए, और इस प्रारूप में उनके बल्ले से 15 शतक निकले हैं.
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