नई दिल्ली: 29 मई की रात को राजधानी दिल्ली, एनसीआर और आस-पास के राज्यों में भूकंप के झटके महसूस किए गए. करीब 10 सेकेंड तक राजधानी दिल्ली में भूकंप के झटके महसूस होते रहे. दिल्ली में पिछले एक महीने में ये चौथा मौका था, जब यहां पर भूकंप के झटके महसूस किए गए थे.
भूकंप क्यों आता है, इसके लिए सबसे पहले ज़रूरी है धरती की बनावट को समझना. धरती की बनावट को मुख्य रूप से चार हिस्सों में बांटा जा सकता है. इनर कोर, आउटर कोर, मेटल और क्रस्ट. इसमें से भूकंप का लेना देना सिर्फ क्रस्ट से है. बाकी के तीन हिस्सों का इससे कोई लेना देना नहीं है. क्रस्ट धरती की सबसे ऊपरी परत होती है, जो हमें आपको नंगी आंखों दिखाई देती है. धरती पर मौजूद नदियां, समंदर, पर्वत, पहाड़, पठार सब इसी क्रस्ट का हिस्सा हैं. समंदर के नीचे की ज़मीन भी इसी क्रस्ट का हिस्सा है. मतलब ये है कि हम और आप जितना सोच सकते हैं, इस परत की गहराई उससे कई गुना ज्यादा है.
प्लेट टैक्टॉनिक थ्योरी के मुताबिक इस क्रस्ट में होती हैं प्लेट्स, जो आपस में जुड़ी होती हैं. इनको कहते हैं टेक्टॉनिक प्लेट्स. संख्या में ये एक दर्जन से ज्यादा हैं. ये प्लेट्स महाद्वीपों में हैं, महासागरों में हैं और महाद्वीप-महासागर जहां मिलते हैं, वहां भी हैं. ये अंदर ही अंदर हिलती डुलती रहती हैं. अब अगर ये थोड़ा बहुत हिलती हैं तो किसी को पता भी नहीं चलता है, लेकिन अगर ये ज्यादा हिल जाती हैं तो असर ऊपर तक दिखने लगता है. यही भूकंप होता. प्लेट्स जहां-जहां जुड़ी होती हैं, वहां-वहां टकराव ज्यादा होता है और उन्हीं इलाकों में भूकंप ज्यादा आता भी है. धरती पर जो भी बड़े-बड़े पहाड़ दिख रहे हैं, वो सब के सब प्लेट्स के टकराने से ही बने हैं. ये प्लेट्स कभी आमने-सामने टकराती हैं तो कभी ऊपर नीचे टकराती हैं तो कभी आड़े-तिरछे भी टकरा जाती हैं. और जब-जब ये टकराती हैं, भूकंप आ जाता है. ये भूकंप आता है तो धरती हिलती है. और इस हिलने से कभी ज़मीन फट जाती है, तो कभी मकान गिर जाते हैं तो कभी पेड़-पौधे बर्बाद हो जाते हैं. वहीं अगर ये भूकंप समंदर के नीचे वाली प्लेट्स के हिलने से आते हैं तो फिर समंदर में सुनामी आती है और समंदर की लहरें अपने आस-पास के इलाके को बर्बाद कर देती हैं.
भूकंप को नापने के लिए जो मशीन है, उसे कहते हैं सिस्मोमीटर. नापने की जो ईकाई है वो है रिक्टर स्केल. अगर रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 3 या इससे कम तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन अगर तीव्रता 3 से ज्यादा हो तो बर्बादी शुरू हो जाती है. और अगर तीव्रता 6 से ज्यादा हो तो तबाही निश्चित हो जाती है. धरती के नीचे जहां प्लेट्स आपस में टकराती हैं, वैज्ञानिक उसे कहते हैं फोकस या हाईपो सेंटर. इस हाईपो सेंटर के ठीक ऊपर धरती पर जो जगह होती है, उसे कहा जाता है एपीसेंटर. इसी एपीसेंटर पर लगा होता है सिस्मोग्राफ. जब प्लेट्स टकराती हैं, तो उससे तरंगे निकलती हैं और ये तरंगे सिस्मोग्राफ से टकरा जाती हैं. इसी तरंग के टकराने के आधार पर सिस्मोग्राफ भूकंप की तीव्रता मापता है और उसे रिक्टर स्केल पर दर्ज कर देता है.
रही बात दिल्ली में बार-बार भूकंप आने की, तो इसकी भी एक वजह है. भूकंप के लिहाज से भारत के वैज्ञानिकों ने भारत को चार हिस्सों में बांट रखा है. जोन 2, जोन 3, जोन 4 और जोन 5. संवेदनशीलता के लिहाज से इन क्षेत्रों की नंबरिंग की गई है. यानि कि भूकंप का खतरा जिन इलाकों में कम है, वो जोन 2 में आते हैं और जिन इलाकों में ज्यादा है वो क्रमश: बढ़ते जाते हैं. दिल्ली को वैज्ञानिकों ने जोन चार में रखा है. यानि कि यहां पर भूकंप का खतरा ज्यादा है. रिक्टर स्केल पर यहां पर 7.9 तीव्रता का भूकंप आ सकता है. दिल्ली और एनसीआर के अलावा जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के साथ ही यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल के भी कुछ हिस्सों को जोन चार में रखा गया है. वहीं जोन पांच में उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर का बड़ा हिस्सा है, जो पर्वतीय है. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश का पर्वतीय हिस्सा, गुजरात का कच्छ वाला हिस्सा और पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्य जोन पांच में ही आते हैं. जोन तीन में मध्य भारत के राज्य हैं. वहीं दक्षिण भारत के राज्यों को जोन 2 में रखा गया है, क्योंकि वहां पर भूकंप का खतरा सबसे कम होता है.
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