भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा न निकलने से 142 साल की परंपरा टूटी, महंत बोले- गलत व्यक्ति पर भरोसा किया

कोरोना लॉकडाउन के चलते गुजरात में इस बार भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा आषाढ़ी बीज​ के दिन नहीं निकल सकी। हाईकोर्ट द्वारा नगर भ्रमण के लिए परमिशन नहीं दी गई, इसलिए मंदिर के अंदर ही प्रतीकात्मक रथयात्रा निकाली गई। जिसके उपरांत भगवान के विग्रहों को रथ से उतारकर मंदिर में पुन: स्थापित कर दिया गया। इस बीच भगवान जगन्नाथ मंदिर के महंत व प्रमुख पुजारी दिलीप दास ने बड़ा बयान दिया।

गलत व्यक्ति पर भरोसा करने से 142 साल पुरानी परंपरा टूटी

दिलीप दास ने रथयात्रा न निकलने पर आमजन से माफी मांगते हुए सरकारी अमले पर गुस्सा जताया। दास बोले कि, 'मेरे द्वारा गलत व्यक्ति पर भरोसा करने से 142 साल पुरानी परंपरा टूट गई। मुजे किसी ने आश्वासन दिया था कि रथयात्रा निकालने की अनुमति दे दी जाएगी, लेकिन मैंने जिस पर भरोसा किया, वह अपने वायदे पर खरा नहीं उतरा। इसलिए मैं भगवान जगन्नाथ को नगरयात्रा नहीं करवा सका।'

'किसी का नाम नहीं ले रहा, धोखा मिला'

दिलीप दास आगे बोले- 'मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता, लेकिन मेरा काम तब होता, जब मैं किसी और के बजाय भगवान पर भरोसा करता। यदि सब सही रहता तो हर बार की तरह रथयात्रा शहर भर से निकलती।'

ऐसा कहते हुए दास की आंखें भर आईं।

'भक्तों को भी बड़ी ठेस पहुंची है'

वहीं, मंदिर के ट्रस्टी महेंद्र झा ने कहा कि, 'हमारा आत्मविश्वास चकनाचूर हो गया। रथयात्रा की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई थीं। सरकार, ईश्वर और न्यायालय पर भी भरोसा था। लेकिन हम गलत थे, हमें अंत में सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए भी समय नहीं मिला। महंत भी चाहते थे कि भगवान जगन्नाथजी के तीनों रथ नगर में निकलें, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। जिससे न सिर्फ महंत को बल्कि, भक्तों को भी बड़ा झटका लगा है।'

हाईकोर्ट में अटक गया था पेंच

मालूम हो कि, पुरी में जगन्नाथ यात्रा को मंजूरी मिलने के बाद अहमदाबाद में भी रथयात्रा निकालने के लिए अंतिम समय तक प्रयास किए गए थे। सरकार से यह भी उम्मीद की गई थी कि, हाईकोर्ट से ही मंजूरी मांगी जाएगी। हाईकोर्ट में कार्यवाही देर रात तक चली थी। रथयात्रा से एक दिन पहले तक महंत दिलीपदास को उम्मीद थी कि रथयात्रा होगी, लेकिन हाईकोर्ट से यात्रा निकालने की अनुमति नहीं मिली। इस पर अब उन्होंने रोष प्रकट किया है।

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