लॉकडाउन की वजह से एक बड़ी खुशखबरी मिली है. राजस्थान के धौलपुर जिले की सीमा में बहने वाली चंबल नदी का तट नवजात घड़ियालों से चहक उठा है. नेशनल चंबल सेंचुरी इन दिनों घड़ियालों की आवाज से गुंजायमान है. इस बार हजारों की संख्या में घड़ियालों ने जन्म लिया है. ऐसा पहली बार हुआ है कि इतनी बड़ी संख्या में घड़ियालों ने जन्म लिया. खास बात यह है कि ये घड़ियाल दुर्लभ डायनासोर प्रजाति के हैं. घड़ियाल देश दुनिया से विलुप्त होने की कगार पर खड़े हैं. ऐसे में चंबल नदी में इनकी अच्छी संख्या होना एक सुखद खबर है.
चंबल नदी के 435 किलोमीटर क्षेत्र में घड़ियाल अभ्यारण्य बना हुआ है. सीमावर्ती धौलपुर और मध्य प्रदेश के देवरी के साथ उत्तर प्रदेश में आगरा जिले के वाह इलाके में घड़ियालों के रक्षण और कुनबा बढ़ाने के लिए काफी प्रयास किए जाते हैं. चंबल नदी में वर्तमान समय में घड़ियालों की संख्या 1859 है. अगर जन्म लेने वाले घड़ियालों के बच्चों की संख्या जोड़ देते हैं तो चंबल में घड़ियालों की संख्या करीब तीन हजार के आस-पास हो जायेगी. लॉकडाउन के बाद से चंबल नदी में घड़ियालों का परिवार लगातार बढ़ रहा है.
मध्य प्रदेश के देवरी अभ्यारण्य केंद्र और धौलपुर रेंज में करीब 1188 अंडों में से घड़ियाल के बच्चे सुरक्षित निकल आये हैं. अभी शेष 512 अंडे बचे हैं जिनसे घड़ियाल का जन्म होना बाकी है. जबकि वाह इलाके में काफी अंडों से बच्चे निकले हैं. जब नवजात घड़ियालों की लंबाई 1.2 मीटर होती है तब ही इन्हें चंबल नदी में छोड़ा जाता है. अगर लम्बाई कम होती हैं तो इन्हें देवरी अभ्यारण केंद्र में रखा जाता हैं और लम्बाई पूरी होने पर चंबल नदी में छोड़ दिया जाता है.
गौरतलब है कि, 1980 से पूर्व भारतीय प्रजाति के घड़ियालों का सर्वे हुआ था, जिसमें चंबल नदी में केवल 40 घड़ियाल मिले थे. जबकि 1980 में इनकी संख्या 435 हो गई थी. तभी से इस इलाके को घड़ियाल अभ्यारण्य क्षेत्र घोषित किया गया था और इनके संवर्धन (पालन-पोषण ) के लिए सरकार ने कई प्रयास किए. देवरी केंद्र पर हर साल 200 अंडे रखे जाते हैं, जो नदी के विभिन्न घाटों से लाए जाते हैं. वहां इनकी हैचिंग होती है. जबकि धौलपुर रेंज में शंकरपुरा, अंडवापुरैनी, हरिगिर बाबा आदि घाटों पर घड़ियाल हजारों अंडे देते हैं और अब अंडों से बच्चे निकल चुके हैं.
चंबल के इन घाटों के किनारे झुंड में इनकी उछल कूद का नजारा देख कर इलाके के लोगों में खुशी का माहौल है. चंबल नदी में पहली बार हजारों की तादाद में घड़ियाल के बच्चे जन्मे हैं. इन्हें देखकर चंबल सेंचुरी के अधिकारियों के चेहरों पर भी खुशी है. चंबल नदी वर्तमान में घड़ियालों के साथ-साथ 710 मगरमच्छ और 68 डॉल्फिन सहित अन्य जीव-जंतुओं का निवास स्थान है.
अप्रैल से जून तक घड़ियाल का प्रजनन काल रहता है. मई-जून में मादा रेत में 30 से 40 सेमी का गड्ढा खोद कर 40 से लेकर 70 अंडे देती है. करीब महीने भर बाद अंडों से बच्चे मदर कॉल करते हैं जिसे सुन मादा रेत हटा कर बच्चों को निकालती है और चंबल नदी में ले जाती है. धौलपुर रेंज और देवरी सेंटर पर घड़ियालों के बच्चों को जीवन बचाने के लिए कई स्तरों पर संघर्ष करना पड़ता है. हालांकि, सबसे बड़ा खतरा तो जीवनदायिनी चंबल नदी ही रहती है. इसकी मुख्यधारा में आकर कई घड़ियालों के बच्चों की मौत भी हो जाती है.
वहीं, धौलपुर स्थित राष्ट्रीय चम्बल अभ्यारण्य के वन रक्षक संतोष मौर्य ने बताया कि सबसे अधिक नुकसान बारिश के दिनों में होता है. इसके अलावा बाज, कौवे, सांप, मगरमच्छ सहित अन्य मांसाहारी जलीय जीवों से खतरा बना रहता है. घड़ियाल अत्यंत दुर्लभ शुडल वन का जीव है और दुनिया में करीब-करीब सभी जगह से ये लुप्त हो चुके हैं. भारत में ही इनकी सबसे ज्यादा संख्या पाई जाती है और सबसे ज्यादा संख्या चंबल नदी के इलाके में है.
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