आमतौर पर लोग बोलचाल में किसी चीज की तुलना 19-20 से करते हैं। लेकिन, 2020 अबतक ऐसा गुजरा है, जब लोगों ने मजाक में ही सही ऐसी तुलना से भी परहेज करना शुरू कर दिया है। क्योंकि, अबतक साल 2020 सारी दुनिया पर बहुत ही भारी गुजर रहा है। कोरोना वायरस महामारी से पूरा विश्व लड़ रहा है। दिल्ली-एनसीआर समेत भारत के कई हिस्सों समेत न्यूजीलैंड तक में भूकंप के झटके अलग दहशत पैदा कर रहे हैं। क्या ये झटके आने वाली किसी बड़ी तबाही के संकेत हैं तो इसको लेकर वैज्ञानिकों की राय मुख्तलिफ हैं। एक के बाद एक चक्रवात आकर अलग से डरा जा रहे हैं। ऐसे में आने वाले रविवार यानि 21 जून को दुनिया खत्म होने की भविष्यवाणी ने सोशल मीडिया पर बहस अलग छेड़ रखी है। ये भविष्यवाणी 'माया' कैलेंडर की गणना पर आधारित है। सबसे बड़ी बात ये है कि उसी दिन सूर्य ग्रहण भी लग रहा है, जिसमें इस बार रिंग ऑफ फायर का भी नजारा दिखने वाला है। अब सवाल है कि क्या ये सब महज एक संयोग है ?
क्या 21 जून को प्रलय आने वाला है ?
'माया' कैलेंडर हाल में सबसे पहले तब चर्चा में आया था, जब उसकी गणना के आधार पर पहली बार 21 दिसंबर, 2012 को दुनिया के खत्म होने की भविष्यवाणी की गई थी। वह भविष्यवाणी तो गलत साबित हो गई। लेकिन, बाद में दावा किया गया कि वह भविष्यवाणी गलत गणना के आधार पर कर दी गई थी, इसलिए गलत हुई। लेकिन, अब उसी कैलेंडर के आधार पर की गई नई गणना करने के बाद दावा किया जा रहा है कि प्रलय 21 जून, 2020 (रविवार) को आने वाला है। संयोग से इसी दिन साल का बहुत ही प्रभावी सूर्य ग्रहण भी लग रहा है, इसलिए 'माया' की भविष्यवाणी को लेकर जिज्ञासा बहुत ज्यादा बढ़ गई है।
नई कॉन्सपिरेसी थ्योरी के आधार पर भविष्यवाणी
हालांकि आज पूरी दुनिया ग्रेगोरियन कैलेंडर का इस्तेमाल करती है। यह कैलेंडर पहली बार 1582 में बना था और इससे पहले कई तरह के कैलेंडर होते थे, जिसमें माया और जूलियन कैलेंडर शामिल हैं। जानकार मानते हैं कि ग्रेगोरियन कैलेंडर सूर्य की परिक्रमा करने में पृथ्वी के लगने वाले समय को ज्यादा सही तरीके से बताता है। जबकि, जूलियन और माया कैलेंडर में इसकी कमी है, इसलिए उसमें हर साल 11 दिन घटते चले जाते हैं। इसलिए कॉन्सपिरेसी थ्योरी के हिसाब से 2012 वाली तारीख गलत थी और कयामत का दिन असल में 21 जून, 2020 रहने वाला है।
खगोलीय ज्ञान में माहिर थी माया सभ्यता
माया सभ्यता के लोगों की सबसे बड़ी विशेषता उनकी खगोलीय ज्ञान थी। उन्होंने अलग-अलग घटनाओं, धार्मिक उत्सवों और जन्म-मरण से जुड़ी बातों का लेखा-जोखा रखने के लिए कैलेंडर बनाया था। माया सभ्यता की गणना और पंचांग को ही माया कैलेंडर कहा जाता है। जानकारी के मुताबिक इसका एक साल 290 दिन का होता था। माया कैलेंडर में तारीख तीन तरह से निर्धारित होती थीं। तारीख का निर्धारण लंबी गिनती, जॉलकिन यानी ईश्वरीय कैलेंडर और हाब यानि लोक कैलेंडर के माध्यम से होता था। इसी आधार पर माया सभ्यता के लोग भविष्यवाणियां करते थे। माया सभ्यता के लोगों की मान्यता थी कि जब उनके कैलेंडर की तारीखें खत्म होती हैं, तो धरती पर प्रलय आता है और नए युग की शुरुआत होती है।
अचानक हुआ था माया सभ्यता का विनाश
अब सवाल है कि माया सभ्यता के लोग कौन थे? हिस्ट्री डॉट कॉम के मुताबिक माया साम्राज्य आज के ग्वाटेमाला में स्थित थी। 5वीं सदी में इस सभ्यता और साम्राज्य का प्रभाव अपने चरम पर था। माया सभ्यता के लोगों ने कृषि, मिट्टी के बर्तनों, चित्रलिपि लेखन, कैलेंडर बनाने और गणित में बहुत बढ़िया प्रदर्शन किया और प्रभावशाली वास्तुकला और प्रतीकात्मक कलाकृतियों की भरपूर यादें छोड़कर गए। लेकिन, 9वीं सदी तक आते-आते माया लोगों के पत्थरों से बने बड़े-बड़े शहर खाली पड़ गए। 19वीं सदी से इतिहासकार और पुरातत्ववेत्ता यह जानने की कोशिशों में लगी हैं कि आखिर इस सभ्यता का विनाश अचानक क्यों हो गया।
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