वाह रे किस्मत: कभी करती थी बड़ी कंपनी में काम, अब बेचना पड़ा पान-मसाला



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कानपुर देहात: कोरोना महामारी के चलते हुए लॉकडाउन ने कई लोगों की जिंदगी बदल कर रख दी। मैंथा थाना क्षेत्र के शाहपुर गांव निवासी अवंतिका राजावत की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। वह गुड़गांव के सेक्टर 8 में ओला कंपनी में अकाउंटेंट की नौकरी करती थीं। इसके लिए उन्हें 32 हजार रुपये मासिक वेतन मिलता था। लॉकडाउन की वजह से उनकी नौकरी चली गई। तमाम मुसीबत उठाकर वह किसी तरह अपने गांव पहुंची। अब पढ़ी-लिखी अवंतिका पान-मसाला बेचकर अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं।


गुड़गांव में करती थी जॉब


अवंतिका राजावत गुड़गांव में करती थी जॉब। 3 साल पहले गईं थीं गुड़गांव अवंतिका के परिजनों का कहना है कि आगे अगर सही समय आया तो वह कानपुर देहात के अति पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में कंप्यूटर कोचिंग सेंटर चलाएंगी। अवंतिका सिंह राजावत 3 साल पूर्व गुड़गांव के सेक्टर 8 में नौकरी की तलाश में गई थी। यहां उन्हें कंप्यूटर की बेहतर जानकारी होने के कारण ओला कंपनी में अकाउंटेंट की जॉब मिल गई। 32 हजार मासिक वेतन के साथ उनकी जिंदगी आसानी से पटरी पर दौड़ने लगी थी।


कोरोना महामारी के कारण घोषित लॉकडाउन के कारण ओला कंपनी के वाहनों का चलना बंद हो गया। 2 माह तक बैठे कर्मचारियों को वेतन देने के बाद कंपनी ने उनकी छुट्टी करना शुरू कर दिया। लॉकडाउन के कारण कंपनी की आमदनी प्रभावित होने के बाद कंपनी के करीब एक हजार वर्करों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अवंतिका को भी अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा. कंप्यूटर कोचिंग सेंटर खोलना चाहती हैं अवंतिक।


बेटी पर नाज है


17 मई को अवंतिका किसी तरह अपने गांव शाहपुर पहुंची। परिवार में माता-पिता और एक छोटे भाई की जिम्मेदारी उसके सिर पर है। यहां उन्होंने जज्बे के साथ नई जिंदगी जीने का फैसला लिया। अवंतिका अब गांव में पान-मसाले की दुकान खोलकर जिंदगी जी रही हैं. उनका कहना है नौकरी छूटने के बाद वह बेहद परेशान हो गई थी। आवश्यक जरूरतों के लिए पैसों की कमी होने से उन्होंने दुकान खोली। इसकी कमाई से वह कंप्यूटर कोचिंग सेंटर खोलकर बच्चों को शिक्षा देना चाहती हैं।


अवंतिका की मां ने बताया कि की तो उनका कहना था उन्हें अपनी बेटी पर नाज है। छोटे से गांव से निकलकर बड़े शहर में वह पैसे कमा रही थी जिससे घर चलता था। लेकिन गांव आकर भी मेरी बेटी ने हार नहीं मानी है।


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