भारत के फायदे की बात आई तो दोस्त रूस ने कर दी चीन की तरफदारी



अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के जी-7 समूह में शामिल होने को लेकर जहां भारत ने सकारात्मक संकेत दिए हैं, वहीं भारत के पुराने दोस्त रूस ने इसे चीन को अलग-थलग करने की रणनीति करार दिया है. रूस ने भारत से अलग लाइन पर चलते हुए चीन की तरफदारी की है.




रूस के फेडरेशन काउंसिल इंटरनेशनल अफेयर कमिटी के चीफ और सांसद कॉन्सटैनटिन कोसाचेव ने कहा है कि मास्को अमेरिका के जी-7 में शामिल होने के प्रस्ताव को लेकर उत्सुक नहीं है और वह चीन को टारगेट करने की मंशा से बनाए गए किसी समूह या गुट का हिस्सा नहीं बनना चाहता है.




बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ दिन पहले जी-7 का विस्तार कर रूस और भारत को भी इसमें शामिल करने का प्रस्ताव रखा था. भारत के विदेश मंत्रालय के बयान के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप से हुई बातचीत में कहा था कि कोरोना महामारी के बाद नई वैश्विक व्यवस्था में फोरम का विस्तार जरूरी है.




जी-7 में शामिल होने को लेकर भारत और रूस का नजरिया एक-दूसरे से बिल्कुल उलट है. जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप के जी-7 को लेकर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है, वहीं रूस इसकी मंशा को लेकर लगातार सवाल खड़े कर रहा है. रूस का कहना है कि अमेरिका सिर्फ चीन को अलग-थलग करने के मकसद से ऐसा कर रहा है.




भारतीय पत्रकारों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस में कोसाचेव ने कहा, भारत, रूस, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया को जी-7 का आमंत्रण मिला है लेकिन उनके पास समिट के फैसलों या नतीजों को प्रभावित करने का कोई मौका नहीं होगा. कनाडा और यूके समेत कई देशों ने भी ट्रंप के जी-7 में रूस को शामिल कराने के प्रस्ताव का मजबूती से विरोध किया है.




उन्होंने कहा, "दुनिया में प्रभाव रखने वाले कई मजबूत देश इस समिट की चर्चा में हिस्सा ले सकते हैं. चीन इसका स्पष्ट उदाहरण है. लेकिन अमेरिका का भारत और रूस को बुलाना और चीन को आमंत्रित ना करना, इसे लेकर संदेह पैदा होता है. चीन के खिलाफ ट्रंप एक संयुक्त विपक्ष खड़ा करना चाहते हैं और यही अमेरिकियों की मौजूदा रणनीति है. मैं किसी देश के खिलाफ कोई ब्लॉक या गठबंधन बनाने के सख्त खिलाफ हूं."




कोसाचेव ने कहा, ट्रंप के पास जी-7 को विस्तार करने के लिए बहुमत नहीं है और वह सिर्फ जी-7 की अगली समिट को आयोजित करने वाले देश का प्रतिनिधित्व करते हैं. वह किसी भी देश को आमंत्रित करने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन इसके बावजूद यह समिट सात देशों की ही होगी. इससे कई सारे सवाल पैदा होते हैं. इस प्रारूप में जिन चार देशों को आमंत्रित किया जाएगा, उनकी भागेदारी सिर्फ नाम मात्र की ही होगी. वहां कई ऐसे प्रस्ताव और दस्तावेज पेश किए जाएंगे जिस पर सिर्फ जी-7 में पहले से शामिल सात देश ही फैसला करेंगे.




भारत-चीन सीमा विवाद पर रूसी सांसद ने कहा कि ये एक द्विपक्षीय विवाद है. कोसाचेव ने कहा, रूस को इस तरह के विवाद में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. अगर जरूरत पड़ती है या ऐसे कुछ हालात बनते हैं तो एक ईमानदार मध्यस्थ होने के नाते हम बातचीत में योगदान देंगे और ऐसे समाधान को निकालने में मदद करेंगे जिसमें सेना का इस्तेमाल ना हो.




लद्दाख में एलएसी पर चल रहे तनाव पर कोसोचेव ने भारतीय पत्रकारों से कहा कि रूस, भारत और चीन दोनों की संप्रभुता का सम्मान करता है. कोसाचेव ने कहा कि पश्चिमी देश लगातार रूस के खिलाफ कैंपेन चला रहे हैं जिसकी वजह से चीन के साथ उसके संबंध सबसे बेहतरीन दौर में हैं.




जी-7 में भारत को आमंत्रित करने को लेकर चीनी मीडिया में भी चर्चा हुई थी. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा था कि जी-7 के विस्तार का विचार भू-राजनीतिक समीकरणों को लेकर है और साफ तौर पर ये चीन को रोकने की कोशिश है. अमेरिका सिर्फ इसलिए भारत के साथ नहीं है कि वह दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है बल्कि अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति का भी अहम हिस्सा है. अमेरिका हिंद-प्रशांत में चीन को रोकने के लिए भारत को मजबूत करना चाहता है. हालांकि, अब रूस ने भी चीन के साथ एकजुटता दिखाई है तो उसे कूटनीतिक मोर्चे पर थोड़ी राहत जरूर मिली होगी.


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