कोविड-19 के प्रकोप के बीच मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले की पारंपरिक मुर्गा प्रजाति कड़कनाथ की मांग इसके पोषक तत्वों के कारण देशभर में बढ़ रही है। हालांकि, नियमित यात्री ट्रेनों के परिचालन पर ब्रेक लगने से इसके अंतरप्रांतीय कारोबार पर बुरा असर पड़ा है।
झाबुआ का कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) अपनी हैचरी के जरिये कड़कनाथ की मूल नस्ल के संरक्षण और इसे बढ़ावा देने की दिशा में काम करता है। केवीके के प्रमुख डॉ. आईएस तोमर ने रविवार को कहा कि देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान कड़कनाथ के चूजों की आपूर्ति पर असर पड़ा था। अब लॉकडाउन खत्म होने के बाद इनकी मांग बढ़ गई है।
उन्होंने बताया कि देशभर के मुर्गा पालक अपने निजी वाहनों से कड़कनाथ के चूजे लेने हमारी हैचरी पहुंच रहे हैं। पिछले महीने करीब 5,000 चूजे बेचे थे और हैचरी की मासिक उत्पादन क्षमता इतनी ही है। उन्होंने कहा कि अगर आज आप कोई नया ऑर्डर बुक करेंगे, तो हम दो महीने बाद ही इसकी आपूर्ति कर सकेंगे।
केवीके ने कोविड-19 की पृष्ठभूमि में कड़कनाथ चिकन को लेकर हालांकि अलग से कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया है। लेकिन यह स्थापित तथ्य है कि दूसरी प्रजातियों के चिकन के मुकाबले कड़कनाथ के काले रंग के मांस में चर्बी और कोलेस्ट्रॉल काफी कम होता है। वहीं प्रोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत कहीं ज्यादा होती है।
अन्य कुक्कुट प्रजातियों से महंगा :
झाबुआ मूल के कड़कनाथ मुर्गे को स्थानीय भाषा में कालामासी कहा जाता है। इसकी त्वचा और पंखों से लेकर मांस तक का रंग काला होता है। कड़कनाथ प्रजाति के मुर्गे, अंडे और इनका मांस दूसरी कुक्कुट प्रजातियों के मुकाबले महंगा होता है।
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