(Bihar News ) शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा। ऐसे निशां की गाथाओं को लोकप्रिय (Books On Kargli Martyrs ) बनाने के लिए शहीद (Kargil War Memories ) के बेटी ने पुस्तकों में उकेर दिया है। कारगिल युद्ध में शहीद मेजर चंद्रभूषण द्विवेदी की बेटी दीक्षा द्विवेदी ने 'लेटर्स फ्रॉम कारगिल' नामक अपनी पुस्तक में अपने पापा के शौर्य व अन्य शहीद परिवारों से मिलकर उनके पत्र और अनुभवों को भी इस पुस्तक में समाहित किया है।
मुजफ्फरपुर(बिहार): (Bihar News ) 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा।' ऐसे निशां की गाथाओं को लोकप्रिय (Books On Kargli Martyrs ) बनाने के लिए शहीद (Kargil War Memories ) के बेटी ने पुस्तकों में उकेर दिया है। शहीदों के संस्मरण लिख कर उन्हें पुस्तकों के जरिए हर दिल में जिंदा रखने की कवायद की गई है। कारगिल युद्ध में शहीद मेजर चंद्रभूषण द्विवेदी की बेटी दीक्षा द्विवेदी ने 'लेटर्स फ्रॉम कारगिल' नामक अपनी पुस्तक में अपने पापा के शौर्य व पराक्रम की गाथा बयां की है। साथ ही अन्य शहीद परिवारों से मिलकर उनके पत्र और अनुभवों को भी इस पुस्तक में समाहित किया है।
पिता रियल हीरो
मेजर चंद्रभूषण जब शहीद हुए उस वक्त दीक्षा महज आठ वर्ष की और बड़ी बहन नेहा 12 साल की थी। मां को लिखी हुई उनकी आखिरी चि_ी कुछ ऐसी थी- 'डिअर भावना! टीवी पर दिखाई गई बहुत सारी न्यूज सही होती है, पर बहुत सी अफवाह भी। इसलिए उस पर पूरी तरह यकीन मत करना। भगवान पर भरोसा रखना'। ये उनके शहीद होने के दो दिन पहले लिखा गया खत था। पिता परिवार को खत लिखना कभी नहीं भूलते थे। परीक्षा की तैयारी के समय व पढ़ाई के लिए हमेशा पत्र लिखकर मार्गदर्शन करते थे। अब नेहा एमबीबीएस डॉक्टर हैं। उनकी शादी सेना में कार्यरत देहरादून निवासी रोहिणी छिब्बर से हुई है। मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई के बाद एक कंपनी में कार्यरत दीक्षा लेखिका हैं। वह अपने पिता को रियल हीरो मानती हैं।
आखिरी मुलाकात
पिता श्रीनगर में तैनात थे। मां भावना द्विवेदी व हम बच्चों को घुमाने के लिए श्रीनगर बुलाया था। 13 मई 1999 को हम लोग एयरपोर्ट पहुंचे थे। इसी बीच उनका ट्रांसफर कारगिल के लिए हो गया। एयरपोर्ट पर ही हमलोग से मुलाकात कर 12 घंटे के अंदर कारगिल के लिए प्रस्थान कर गए। यह आखिरी मुलाकात थी। एयरपोर्ट से ही हमें मेरठ जाना पड़ा, जहां शिक्षा-दीक्षा हो रही थी।
वीरता से लड़े
ऑपरेशन विजय में उनके पिता की रेजिमेंट जब द्रास में पहुंची तो उन पर गोले बरसने लगे थे। दुश्मन कहां थे, इसकी जानकारी नहीं थी। बहुत प्लानिंग करते हुए वे आगे बढ़े थे। दो जुलाई की शाम पापा को यह फैसला लेना था कि फायरिंग करते रहें, या रुक जाएं। सबसे ऊंची चोटी टाइगर हिल पर पाकिस्तानी गोलीबारी का मुंहतोड़ जवाब देते हुए अपनी बटालियन के साथ वीरता से लड़े। दुश्मनों का सामना करते हुए एक बम उनके बगल में आकर गिरा। हाथ में गोली लगी। साथियों को बंकर में जाने का आदेश दिया। ज्यादा खून बहने के कारण दो जुलाई 1999 को शहीद हो गए।
दुश्मनों के दांत खट्टे किए
कारगिल मे युद्ध में दुश्मनों के दांत खट्टे करतेह हुए शहादत को प्राप्त हुए मेजर चंद्रभूषण शिवहर जिले के पुरनहिया प्रखंड स्थित चंडीहा गांव के रहने वाले थे। उनकी बिटिया दीक्षा द्विवेदी ने 'लेटर्स फ्रॉम कारगिल' नामक अपनी पुस्तक में अपने पापा के शौर्य व पराक्रम की गाथा बयां की है। साथ ही अन्य शहीद परिवारों से मिलकर उनके पत्र और अनुभवों को भी इस पुस्तक में समाहित किया है। दीक्षा ने कैप्टन सौरभ कालिया, कैप्टन अमित भारद्वाज, मेजर राजेश सिंह अधिकारी, मेजर चंद्र भूषण द्विवेदी, कैप्टन मनोज कुमार पांडे, कैप्टन अनुज नय्यर, कैप्टन विक्रम बत्रा, मेजर पद्मापानी आचार्य, मेजर रितेश शर्मा के परिवारवालों से पत्र जुटाकर पुस्तक में संग्रहित किया है।
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