69 साल पहले एक्ट्रेस बनने के लिए ऐसे देना पड़ता था ऑडिशन, आसान नहीं थी बॉलीवुड की राह

कई लोग हैं, जो बॉलीवुड यानी मुंबई में एक्टर बनने का सपना लेकर पहुंचते हैं। ऐसा अब भी होता है और 60 साल पहले भी होता था। 60 के दशक में कई लड़कियां फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुंबई स्क्रीन टेस्ट देने आती थीं लेकिन यह रास्ता इतना आसान नहीं था, जितना लोग समझते थे। इस पैकेज में हम दिखा रहे हैं 1951 की कुछ ऐसी तस्वीरों को, जो बॉलीवुड ऑडिशन की सच्चाई दिखाती हैं। ये तस्वीरें Life Magazine के फोटो जर्नलिस्ट 'जेम्स बुरके' ने तब खींची थीं, जब डायरेक्टर अब्दुल राशिद करदार को अपनी किसी फिल्म के लिए एक भारतीय और एक विदेशी लड़की सिलेक्ट करनी थी। 




अब्दुल राशिद करदार बतौर डायरेक्टर शाहजहां (1946), दिल्लगी (1949), दुलारी (1949) और दिल दिया दर्द लिया (1966) जैसी फिल्में डायरेक्ट कर चुके हैं।



अब्दुल राशिद करदार का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को लाहौर में हुआ था। उन्हें एआर करदार के नाम से भी जाना जाता है।



उनका उपनाम मियांजी था। करदार को लाहौर के फ़िल्म उद्योग का जनक भी माना जाता है। बंटवारे के वक्त पाकिस्तान से भारत चले आए और मुंबई आकर बॉलीवुड का हिस्सा बन गए।



करदार ने अपने प्रोडक्शन में 40 से 60 के दशक के बीच कई यादगार फ़िल्में बनाईं। करदार ने अपने करियर के शुरुआत विदेशी फिल्मों के लिए कैलिग्राफी द्वारा पोस्टर बनाने से की थी।



साल 1928 में करदार ने फिल्म डॉटर्स ऑफ टुडे और 1929 में हीर रांझा में बतौर एक्टर काम किया। करदार ने बतौर डायरेक्टर अपनी पहली फिल्म 1929 में हुस्न का डाकू बनाई थी।




करदार ने इंडियन फिल्म इंडस्ट्री से कई कलाकारों को इंट्रोड्यूस करवाया। इनमें नौशाद, मजरूह सुल्तानपुरी और सुरैया जैसी हस्तियां शामिल हैं।



इंडस्ट्री के मशहूर गायक मोहम्मद रफी को करदार ने ही अपनी फिल्म दुलारी के गीत 'सुहानी रात ढल चुकी' गाने का मौका दिया था।



85 साल की उम्र में 22 नवंबर, 1989 को अब्दुल राशिर करदार का मुंबई में निधन हो गया।



अब्दुल राशिद करदार पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर अब्दुल हफीज करदार के सौतेले भाई थे।



1951 में अपनी एक फिल्म के लिए ऑडिशन लेते अब्दुल राशिद करदार।

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