लॉकडाउन की मार्मिक कहानी: करोड़ों की संपत्ति के पहरेदार हैं, मगर न रोटी है न पानी है

canaught place


दिल्ली में लॉकडाउन 2.0 लागू हो गया है। सरकार, जनता और विभिन्न संस्थाएं इसे अपने अपने तरीके से ले रही हैं। इस बीच राष्ट्रीय राजधानी का सेंटर प्वाइंट, जिसे कनॉट प्लेस कहा जाता है, उसकी अपनी एक अलग ही कहानी है। ये कहानी मार्मिक भी है कि करोड़ों रुपये की संपत्ति की पहरेदारी करने वालों को खुद भूखे रहना पड़ रहा है।

उन्हें न खाना मिल रहा है और न पीने का पानी। कनॉट प्लेस में सैकड़ों ऐसे व्यापारिक संस्थान हैं, जो लॉकडाउन की वजह से बंद हैं। इनकी सुरक्षा के लिए वहां गार्ड तैनात किए गए हैं। ये गार्ड दिन-रात ड्यूटी करते हैं, मगर इन्हें कई दिक्कतों का सामना भी करना पड़ रहा है।

घर से कनॉट प्लेस तक आने के लिए कोई साधन भी नहीं है। कई गार्ड ऐसे भी थे, जिन्होंने बताया कि वे 5-10 किलोमीटर से पैदल चलकर ड्यूटी देने आते हैं।

लॉकडाउन के चलते कनॉट प्लेस बंद पड़ा है। चूंकि यहां स्थित बड़ी बड़ी दुकानों और शोरूम में चोरी न हो जाए, इसके डर से वहां गार्ड तैनात किए गए हैं। इन गार्ड की ड्यूटी भी ऐसी है कि इन्हें एक साथ कई दिनों तक वहीं रहना पड़ता है। ऐसे कई गार्ड से बातचीत की गई।

गार्ड राज ठाकुर का कहना है कि यहां पर सबसे बड़ी समस्या खाने की है। जब पूरी तरह यहां लॉकडाउन है तो खाने-पीने का इंतजाम नहीं हो पाता। दूसरा, यहां पर शौचालय की बड़ी समस्या है।

इक्का-दुक्का खुले हुए हैं, जबकि ज्यादातर शौचालयों पर ताला लटका है। एनडीएमसी का कोई कर्मचारी कभी-कभार यहां घूमता हुआ मिल जाता है, तो उससे मिन्नत कर थोड़ी देर के लिए शौचालय खुलवा लेते हैं।

सरकार से कोई मदद नहीं मिल रही। अगर कहीं खाना बंटने की सूचना मिलती भी है, तो वहां नहीं पहुंच पाते। वजह, पीछे किसे छोड़कर जाएं। सुरक्षा गार्ड की एक दूसरी परेशानी ट्रांसपोर्ट को लेकर है। विभूति कुमार बताते हैं, गार्डों को बहुत दूर से पैदल आना पड़ता है।

कनॉट प्लेस में ड्यूटी कर रहे एक गार्ड का कहना है कि वह मंडावली इलाके का रहने वाला है। वहां से कनॉट प्लेस तक आने का कोई संसाधन नहीं है। इसके दो ही विकल्प हैं। एक, पैदल चलो और दूसरा किसी से मदद ले लो। अब आप समझ सकते हैं कि कोई दुपहिया वाहन चालक आता भी है तो वह गार्ड को नहीं बैठाएगा।

हम कई लोगों को रूकने का इशारा भी करते हैं, मगर कोई नहीं ठहरता। मजबूरन हमें पैदल ही यहां तक आना पड़ता है। शैलेंद्र सिंह का कहना है कि यहां ड्यूटी भी लंबी होती है। जब तक रिलीवर नहीं आता, तो वहां से हिल नहीं सकते। कई बार ऐसा भी हो जाता है कि दो दिन तक रिलीवर नहीं पहुंच पाता। ऐसे में हमें ही यहां पर रूकना पड़ता है।

कनॉट प्लेस में बहुत से गार्ड ऐसे भी हैं, जिनके लिए रोजाना आना-जाना संभव नहीं है तो वे लॉकडाउन में लगातार ड्यूटी करते रहते हैं।

राज ठाकुर के अनुसार, सरकार से किसी तरह की कोई सहायता नहीं मिल रही। कई बार यह होता है कि कोई पुलिसवाला बता देता है कि फलां स्कूल में खाना बंट रहा है, जाकर ले आओ। अब हमारे सामने दिक्कत यह होती है कि हम ड्यूटी छोड़कर कैसे जाएं। ऐसे में हम पुलिस वाले के सामने हाथ जोड़कर गुजारिश कर लेते हैं कि आप ही कुछ करें।

यह भी हर बार नहीं होता कि पुलिसवाला उनके लिए खाने का इंतजाम कर दे।उ न्हें अपनी ड्यूटी भी करनी होती है, इसलिए उनसे हमेशा कहा भी नहीं जा सकता। मार्केट एसोसिएशन कई बार उन्हें खाना दे जाती है। 

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