प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने देश भर में लॅाकडाउन (Lockdown) का ऐलान किया तो जो जहां था वहीं थम गया. कोरोनावायरस (Coronavirus) से लड़ने के लिए यह कदम बेहद ज़रूरी भी था. लेकिन अचानक से सबकुछ बंद हो जाने से हर कोई परेशान हो गया. हर किसी को किसी न किसी चीज़ की चिंता हो गई. गरीब तबका राशन के लिए चिंतित हो उठा तो मध्यम वर्ग के लोगों को अपने कर्ज अदा करने की परेशानी बढ़ गई. साथ ही उच्च वर्ग के लोगों को भी अपने कारोबार के भविष्य की चिंता सताने लगी. लॅाकडाउन के चलते यह परेशानियां होनी ही थी. सरकार को भी इस बात का पूरा अंदाजा था, लेकिन सरकार के पास अन्य कोई विकल्प भी नहीं था. यह एक बड़ी लड़ाई है इससे कोई अकेला नहीं लड़ सकता है. ऐसे में देश के हर नागरिकों का साथ पाकर ही इस खतरनाक वायरस से जंग जीता जा सकता है. बेशक परेशानियां बड़ी हैं, इससे पार पाना आसान नहीं है. यही सोचकर सरकार ने राहत पैकेज का ऐलान भी किया. कोरोना से जीतने के लिए सरकार ने 15 हज़ार करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया. ये सारे रकम की व्यवस्था कोरोना वायरस से पार पाने के लिए ही की गई.
कोरोना वायरस के इस दौर में बैंक और उनकी ईएमआई भी ग्राहकों के लिए चिंता का एक बड़ा विषय है
गरीब तबके के लोगों के लिए सरकार ने कुछ राहत भी दी. उनको राशन दिया गया व राज्य सरकारों की ओर से पैसे भी उनके खाते में डाले गए. इसके साथ ही हर शहर और हर कस्बे में समाजसेवक मसीहा का रूप लेकर उन लोगों की मदद कर रहे हैं. यह राष्ट्रीय आपदा है और देश के नागरिकों की यह सेवा देखकर मालूम पड़ता है कि हम जिस समाज में रह रहे हैं वह कितना खूबसूरत है.
निम्न वर्ग की मदद करने को हर ओर से लोग सामने आए, इसलिए अपवाद को छोड़ दें तो ज़्यादा भयावह तस्वीरें सामने नहीं आ रहीं हैं. परेशानियां मध्यम वर्ग के लोगों की बेहद बड़ी है खासकर उन लोगों की जिनपर कर्ज था और उनकी ज़्यादा बचत नहीं थी. आरबीआई ने जब राहत पैकेज का ऐलान किया तो मध्यम वर्ग के लोगों को बड़ा इत्मिनान हुआ, चलो कुछ तो हमारी परेशानियाँ कम होंगी.
बैंक की ओर से तीन महीने की ईएमआई के राहत के ऐलान पर काफी लोगों ने राहत भरी सांस ली. मगर अब जब लोगों ने बैंक के चक्कर काटने शुरू किए और बैंक के फार्मूले को समझा गया तो मालूम पड़ा कि बैंक वालों ने ऐसे ही राहत नहीं दी है बल्कि इसके बदले में वह और जेब काटने पर तुले हुए हैं. आरबीआई ने बैंको को सलाह दी थी कि वह कर्जदारों को तीन महीने की मोहलत दें, जिससे परेशान हाल लोगों को थोड़ी राहत मिल सके. बदले में बैंक वालों ने जो गणित बनाया उससे कर्जदार खुद को छला हुआ महसूस करने लगे हैं.
कर्जदारों का कहना है कि बैंकों ने तीन महीने की छूट तो दी लेकिन इसका ब्याज वसूलने की बात कही है, यानी लोन को महंगा कर दिया है. इस गणित को आप यूं समझ लीजिए -
एसबीआई के अनुसार अगर आपने 6 लाख का ऑटो लोन लिया है और आपकी 54 महीने की ईएमआई बची है, तो आपको तीन महीने ईएमआई नहीं चुकाने पर करीब 19000 रुपये अतिरिक्त ब्याज के तौर पर देना होगा. यानी 1.5 ईएमआई अतिरिक्त चुकानी होगी.
अगर आपने 30 लाख का होम लोन लिया है और आपकी 15 साल की ईएमआई बची है तो आपको तीन महीने ईएमआई नहीं देने पर 2.34 लाख रुपये अतिरिक्त ब्याज के तौर पर देना होगा, यानी 8 ईएमआई अतिरिक्त चुकाना पड़ेगी.
बैंक की इस गणित को देखकर समझा जा सकता है कि बैंक वालों ने राहत के नाम पर कर्जदारों से अतिरिक्त वसूली करने का मन बनाया हुआ है. कर्ज अदा करने वाले भी कशमकश में हैं कि आखिर छूट का लाभ लिया जाए अथवा नहीं. एक सच्चाई यह भी है कि जो छोटे मोटे कारोबारी है और उनका एक बड़ा हिस्सा लोन चुकाने में ही चला जाता है, उनके लिए यह एक बहुत बड़ी मार है.
लॅाकडाउन खत्म होने के बाद उनके कारोबार में पहले की तरह तेज़ी आने में काफी वक्त लग सकता है, इसलिए वह लोग चाहते हैं सरकार उनकी भी चिंता करे, कर्जदारों के ऊपर ये एक बहुत ही मुश्किल वक्त है, ऐसे में बैंक की ओर से राहत के नाम पर ये वाली गणित सुनकर वह लोग बेहद चिंतित हो गए हैं और खुद को राहत के नाम पर ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.
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