बिहार, उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूरों को जगी घर जाने का आस, नीतीश कुमार और योगी आदित्यनाथ पर टिकी निगाहें





केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा देश के हिस्सों में फंसे प्रवासी कामगारों, छात्रों, पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को सशर्त अपने घर जाने की अनुमति के बाद इन मजदूरों में आस जगी है। वे घर जाने को व्यग्र हो रहे हैं। इन प्रवासी मजदूरों को घर कैसे लाया जाए या भेजा जाए, इसकी रूपरेखा अगले कुछ दिन में तय होगी। लेकिन घर वापसी को बेकल ये मजदूर चाहते हैं कि उनका नाम उस सूची में जरूर शामिल हो, जिन्हें सरकार घर लेकर जाएगी।

गुजरात के सूरत में पेशे से दर्जी का काम करने वाला 23 वर्षीय सोहेल किसी तरह अपना गुजारा कर रहे हैं। बिहार में मुजफ्फरपुर के रहने वाले सोहेल को केन्द्रीय गृह मंत्रालय के निर्देशों के बाद अब उस बस का इंतजार है, जो उन्हें अपने घर, अपनों तक ले जाएगी।

मैं मर जाता तो, मेरे परिवार का क्या होता: सोहेल
सोहेल पिछले 40 दिन से खाने और खुद को जिंदा रखने की कोशिश करते-करते थक चुका है। उसने फोन पर बताया, 'मैं अब बस घर जाना चाहता हूं। हम यहां संघर्ष कर रहे हैं। बड़ी मुश्किल से खाना मिल रहा है। मैं सोचता रहता हूं कि, दूसरों की तरह मुझे भी घर लौटने की कोशिश करनी चाहिए थी। लेकिन अगर मैं मर जाता तो, मेरे परिवार का क्या होता। अब बस मुझे मेरे बेटे के पास जाना है। उसे सीने से लगाना है।'

सुमन मुंबई से पैदल लौटना चाहता था मध्य प्रदेश
महाराष्ट्र के नागपुर में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले 22 वर्षीय सुमन ने फैसला किया था कि वह पैदल ही अपने घर मध्य प्रदेश के मेघनगर लौट जाएगा, लेकिन उसके साथ के लोगों ने उसे रोक लिया। सभी को सूचना मिली थी कि पुलिस पैदल घर जा रहे लोगों को हिरासत में ले रही है।

मैं घर जाने के लिय यह अवसर गंवाना नहीं चाहता: रामनाथ
लॉकडाउन के कारण 21 अन्य लोगों के साथ मंगलुरु में फंसे बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के ही 34 वर्षीय रामनाथ ने बताया, 'हमें बताया गया है कि इसके लिए पास की जरूरत होगी। मुझे पास कहां से मिलेगा? क्या आप मुझे बता सकते हैं? मैं घर जाने का यह अवसर गंवाना नहीं चाहता।' दो बच्चों के पिता रामनाथ का कहना है कि अगर उन्हें गांव जाकर वहां कोई काम मिल जाता है तो वह फिर कभी वापस नहीं आना चाहेंगे।

'हमने टीवी पर देखा कि हमारे सीएम घर जाने में मदद करेंगे'
नागपुर में फंसे उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के रहने वाले 23 वर्षीय अविनाश कुमार का कहना है, 'हमने टीवी पर देखा कि हमारे मुख्यमंत्री हमें वापस ले जाने में मदद करेंगे। आशा करता हूं कि वे जल्दी ही कुछ करेंगे। मैं बस जाना चाहता हूं, फिर वो मुझे कैसे भी ले जाएं, बस, ट्रेन या कार, कैसे भी। मैं बस जाना चाहता हूं। यहां ना तो खाना है और नाहीं पैसे बचे हैं।'

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