कानपुर में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले में गिरफ्तार विकास दुबे पर राजनीति गरमा गई है। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव विकास दुबे का CDR सार्वजनिक करने की मांग कर रहे है तो वही कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा इस मामले की CBI जांच करने की मांग कर रही है।इस सियासत के बीच अब बड़ा सवाल यह है कि इनकाउंटर से बचने के बाद अब विकास दुबे को आखिर सजा कैसे मिलेगी, अब आगे क्या होगा, क्या विकास ने सरेंडर करके खुद का एनकाउंटर होने से बचा लिया है।
क्या पुलिस अब विकास का कर पायेगी इनकाउंटर -
आम जनता और शहीद पुलिसकर्मियों के परिवारीजन लगातार विकास दुबे के एनकाउंटर की मांग कर रहे है लेकिन क्या अब यह संभव है? दरसल संविधान का आर्टिकल 21 हर प्रत्येक नागरिक को जीने का अधिकार देता है। चाहे वह सामान्य व्यक्ति को या फिर एक अपराधी..
इनकाउंटर के ऊपर 2014 में सुप्रीम कोर्ट की डिविजन बैंच के दिये गए फैसले का भी महत्व है। पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र केस में पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने मुंबई पुलिस के 1995 से 1997 के बीच हुए एनकाउंटर्स में 90 अपराधियों की हत्या पर सवाल उठाए थे। उस समय के चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा और जस्टिस आरएफ नरीमन ने 23 सितंबर, 2014 को फैसले में कहा था कि संविधान के आर्टिकल 21 के तहत हर व्यक्ति को जीने का अधिकार है।सरकार भी उससे उसका यह अधिकार नहीं छीन सकती। इसी तरह की याचिका 2018 में यूपी पुलिस के एनकाउंटर्स के खिलाफ भी दाखिल हुई है।
विकास के सरेंडर के बाद क्या अब एनकाउंटर के सारे विकल्प खत्म -
विकास दुबे ने उज्जैन में कोई अपराध नहीं किया है। लिहाजा ऐसे में यूपी पुलिस उसे उज्जैन कोर्ट में पेश कर ट्रांजिट रिमांड पर यूपी लाएगी। रिमांड मिलने पर विकास दुबे को यूपी पुलिस कानपुर ले जाएगी और कोर्ट में पेश कर रिमांड लेकर पूछताछ करेगी। यदि इस दौरान विकास भागने की कोशिश करता है तो पुलिस उसका एनकाउंटर कर सकती है लेकिन विकास दुबे ने जिस तरह खुद को पुलिस के हवाले किया उससे इस बात की संभावनाएं काफी कम है कि वो पुलिस की गिरफ्त से भागने की कोशिश करेगा।
कोर्ट से सजा मिलने के बाद खत्म हो जाएंगी इनकाउंटर की सारी उम्मीदे -
विकास दुबे के सरेंडर करने के बाद यह बात तो साफ हो गई है कि विकास दुबे अपनी जान बचाना चाहता है इसीलिए उसने उज्जैन मैं जाकर सरेंडर किया ऐसे में कोर्ट से सजा सुनाए जाने के बाद विकास के एनकाउंटर की संभावनाएं पूरी तरीके से समाप्त हो जाएगी।
ऐसे शातिरों का कैसा होगा इनकाउंटर -
सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में पुलिस एनकाउंटरों के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए थे। हर एनकाउंटर की जांच जरूरी है। जांच खत्म होने तक इसमें शामिल पुलिसकर्मियों को प्रमोशन या वीरता पुरस्कार नहीं मिलता। एनकाउंटर आमतौर पर दो तरह के होते हैं। पहला, जिसमें कोई अपराधी पुलिस की हिरासत से भागने की कोशिश करता है। दूसरा, जब पुलिस किसी अपराधी को पकड़ने जाती है और वो जवाबी हमला कर देता है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार, सीआरपीसी की धारा 176 के तहत हर एनकाउंटर की मजिस्ट्रेट जांच जरूरी है। पुलिस को हर मुठभेड़ के बाद इस्तेमाल किए गए हथियार और गोलियों का हिसाब देना होता है। ये सही हैै कि पुलिस को एनकाउंटर का अधिकार नहीं है। सिर्फ खुद की हिफाजत का अधिकार है। अपराधी से खुद की जान बचाने के लिए पुलिसकर्मी गोली चलाता है और उसमें कोई अपराधी मारा जाता है तो इसे साबित करना भी जरूरी है।
विकास दुबे को क्या होगा फांसी या उम्रकैद -
क्रिमिनल लॉयर्स के मुताबिक यूपी पुलिस के लिए राह आसान नहीं है। अब तक विकास दुबे को किसी भी मामले में सजा नहीं हुई है। साफ तौर पर उसके खिलाफ कोई भी ठोस सबूत पुलिस के पास नहीं हैं। ऐसे में बिकरु गांव के एनकाउंटर को लेकर पुलिस को यह साबित करना होगा कि 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के समय विकास दुबे ही अपने गुर्गों को निर्देश दे रहा था, जो इतना आसान नहीं है। इतना ही नहीं, केस लंबा चलेगा। फास्ट ट्रैक में गया तो भी विकास दुबे के लिए फांसी आसान नहीं होगी क्योंकि फांसी रेअरेस्ट ऑफ रेअर मामलों में ही दी जाती है। पुलिस और वकीलों को ज्यादा मेहनत करनी होगी, तभी वह कोर्ट से उसके लिए फांसी की मांग कर सकेगी। हालांकि अगर विकास दुबे ने अपना जुर्म कबूल कर लिया और उसने यह बात अदालत के सामने मान ली कि उसने ही पुलिसकर्मियों के ऊपर गोली चलाने के निर्देश दिए थे और इस हत्याकांड का मास्टरमाइंड वह स्वयं था तब विकास दुबे को फांसी दिए जाने की राह आसान हो जाएगी।
0 Comments