OTT पर फिल्मों का हो रहा है ऐसा हश्र, निर्माताओं ने सपने में भी नहीं सोचा होगा!





मुंबई. डिज्नी+हॉटस्टार ने जुलाई में जब सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद उनकी आखिरी फिल्म दिल बेचारा रिलीज की तो मीडिया में आंकड़े आए ही कि फिल्म को 24 घंटे में करीब 25 लाख दर्शकों ने देखा और हफ्ते भर में संख्या करोड़ों में पहुंच गई. यह अलग बात है कि सुशांत के प्रति संवेदना की लहर थी और डिज्नी+हॉटस्टार ने फिल्म का प्रदर्शन सब्सक्राइबर्स समेत सबके लिए फ्री रखा था. लेकिन बाकी फिल्मों का हाल बुरा है. सिनेमा की दुनिया और बॉक्स ऑफिस के जानकार कहते हैं ओटीटी पर फिल्में लड़खड़ा रही हैं. किसी फिल्म को दो से तीन लाख व्यू पाने तक के लिए लंबा समय लग रहा है. ओटीटी पर वेबसीरीज ज्यादा पसंद की जा रही हैं.

जानकारी के अनुसार लॉकडाउन में जितनी फिल्में अभी तक ओटीटी पर रिलीज हुईं, उनमें से किसी की चर्चा सोशल मीडिया में दो-चार दिन से अधिक नहीं टिकी. बातें ही नहीं, हकीकत भी है कि इन प्लेटफॉर्मों पर ओरीजनल रिलीज के नाम पर ऐसी भी फिल्में आई, जो या तो बरसों से बनी पड़ी थीं या सिनेमाघरों में इनका कुछ हो नहीं सकता था. ओटीटी न होते नवाजुद्दीन सिद्दिकी स्टारर घूमकेतु, निर्देशक तिग्मांशु धूलिया की यारा, ऐक्टर कुणाल केमू की लूटकेस, नसीरूद्दीन शाह स्टारर मी रक्सम शायद ही दर्शकों तक पहुंचतीं. खराब फिल्में ही वह कारण है कि फिल्मी भाषा में जिसे ‘बज’ कहा जाता है, वह ओटीटी फिल्मों के लिए अभी तक सुनने नहीं मिली.

वरना ऐसा नहीं होता कि फिल्म मनोरंजन करे, कुछ नया कहे, लोगों के दिलों को छूए और बात न हो. नामी निर्देशक और बॉक्स ऑफिस सितारे भी ओटीटी पर जादू नहीं दिखा पाए. अनुराग कश्यप निर्देशित 'चोक्डः पैसा बोलता है', अमिताभ-आयुष्मान की 'गुलाबो सिताबो', विद्या बालन की 'शकुंतला देवी' और जाह्नवी कपूर की 'गुंजन सक्सेनाः द कारगिल गर्ल' भी ऐसे आंकड़े नहीं जुटा पाईं कि ओटीटी जारी कर पाते.


मजे की बात यह है कि बॉलीवुड फिल्मों के सिनेमाघरों में रिलीज के अगले ही दिन निर्माता-निर्देशकों के पीआरओ द्वारा फिल्म हिट होने के जश्न की जो खबरें मीडिया में सरकाई जाती हैं, वैसी ही हरकत कुछ ओटीटी भी करने लगे हैं. पिछले हफ्ते विद्युत जामवाल की खुदा हाफिज की रिलीज के अगले ही दिन मीडिया में खबर जारी की गई कि रिलीज होते ही फिल्म ने विद्युत के करिअर की सबसे बड़ी ओपनिंग ली. मगर आंकड़े नहीं दिए. सवाल है कि खुदा हाफिज कैसे विद्युत की सबसे बड़ी ओपनिंग फिल्म हैॽ क्या यह ओटीटी पर उनकी सबसे बड़ी ओपनिंग है या इसमें उनकी थियेटरों में रिलीज फिल्में शामिल हैंॽ कुल जमा यह जुबानी खर्च का मामला है. सचाई यह कि सोशल मीडिया में भी दो दिन बाद ही इस फिल्म पर बात करने वाला कोई नहीं था.

ऐसा नहीं कि ओटीटी पर अच्छा कंटेंट नहीं आया. नवाजुद्दीन सिद्दिकी स्टारर रात अकेली है, निर्देशक प्रकाश झा की परीक्षा, अतुल सभरवाल की बॉबी देओल स्टारर 'क्लास ऑफ 83' जैसी फिल्में आई, मगर ओटीटी प्लेटफॉर्मों की समस्या यह है कि अगर इनके आंकड़े जारी करें तो खराब फिल्मों पर क्या नंबर दिखाएंगे. मुश्किल यह भी है कि जैसे थियेटर में रिलीज होने पर फिल्मों का प्रमोशन होता है, वैसा ओटीटी पर रिलीज फिल्मों का नहीं हो रहा. थियेटर में तो फिल्म आने के बाद भी प्रचार होता है मगर ओटीटी पर रिलीज के साथ मामला ठंडा पड़ जाता है.


सारी बात ट्विटर-यूट्यूब-इंस्टाग्राम के हवाले हो जाती है. फेसबुक पर तो ओटीटी फिल्मों की बात ही नदारद है. हालांकि कुछ लोग खुश हैं कि ओटीटी फिल्मों पर बॉक्स ऑफिस आंकड़ों का दवाब नहीं है मगर इससे फिल्मों को कोई फायदा नहीं हो रहा. यह भी नहीं हो रहा कि फिल्मों की मेकिंग, अदाकारी, निर्देशन और कंटेंट पर ही बात हो रही हो. ऐक्टरों-डायरेक्टरों और ओटीटी प्लेटफॉर्मों की ही इसमें दिलचस्पी सिरे से गायब है.

Post a Comment

0 Comments