लॉकडाउन ने किया पृथ्वी को ख़ामोश, भूकंप मापने वाले सिस्मोग्राफ़ में दर्ज हुआ अनोखा रिकॉर्ड



कोरोनावायरस के बढ़ते ख़तरों के बीच दुनिया की बड़ी आबादी अपने-अपने घरों में क़ैद है. सड़कें सूनी हैं, बाज़ार वीरान हैं. लेकिन इन सबका अंदाज़ा आप किसी एक मोहल्ले को देखकर नहीं लगा सकते. ये ख़ालीपन इतने बड़े स्तर पर फैल गया है कि धरती की तरंगें कम पड़ने लगी हैं.


वैज्ञानिक ने पाया कि कोरोना के कारण जारी लॉकडाउन की वजह से धरती की सतह पर मौजूद साउंड वाइब्रेशन में कमी आई है. यह मानव गतिविधियों में कमी के कारण है. दुनिया में कोविड-19 महामारी के कारण लॉकडाउन है. सभी बड़े शहरों में लोगों का आना-जाना, मिलना-जुलना बंद है. वैज्ञानिकों ने लोगों के घर में रहने से लंदन, पेरिस, ब्रसेल्स, ऑकलैंड और लॉस एंजेलिस में सिसमिक डिटेक्टर से वाइब्रेशन में कमी दर्ज की.


सिसमोमीटर, भूकंपीय तरंगों के साथ मानव गतिविधियों से होने वाली ध्वनि को पकड़ने में भी काम आता है. इसमें इंडस्ट्री और ट्रैफिक साउंथ भी दर्ज होता है. ब्रिटिश जियोलॉजिकल सर्वे द्वारा पूरे लंदन के सिसमोमीटर्स से जुटाए गए आंकड़ों से पता चला है कि मानवीय गतिविधियों में कमी आने के साथ ही धरती पर शोर का स्तर कम हुआ है.




लॉकडाउन की वजह से सबकुछ है ठप


इस हफ्ते सिसमिक साउंड में कमी दिखी


विज्ञान की चर्चित पत्रिका द नेचर के मुताबिक़ बेल्जियम के रॉयल ऑब्जर्वेटरी के भूवैज्ञानिक थॉमस लेकॉक ने धरती की सतह की ध्वनि में होने परिवर्तनों को दिखाने के लिए एक उपकरण बनाया है. इसका इस्तेमाल दुनिया भर के विशेषज्ञों ने किया है. इसी से सिसमोलॉजिस्ट स्टीफन हिक्स ने एक ग्राफ बनाया. इसमें दिखाया गया कि इस हफ्ते औसत दिन के मुकाबले सीसमिक साउंड में कमी देखी गई है.


उन्होंने ब्रिटिश जियोलॉजिकल सर्वे के डोटा भी इस्तेमाल किया. इसमें एम4 मोटरवे पर कम यातायात को दर्शाया गया था. लेकॉक ने ब्रसेल्स में सिसमोमीटर द्वारा पता लगाया कि घर पर रहने से साउंड लेवल में कमी आई है. यह क्रिसमस वाले दिन जैसा था.


एक्सपर्ट के मुताबिक, मानव गतिविधियों के साथ और उनके बिना भूकंप का पता लगाने में हम सक्षम हुए. कई शोर-शराबे वाले स्थान तय किए, जहां कम और ज्यादा शोर मौजूद था. शोर सिर्फ इंसान ही नहीं करते, बल्कि हवाएं और महासागरों से भी शोर उत्पन्न होता है. इस तरह प्राकृतिक ध्वनियों के अलग कैटेगरी हो सकती है.




ग्राफ़िक्स साभार- द नेचर


दिन के मुकाबले रात में कम होता इंसानी शोर


यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के सिसमोलॉजिस्ट सुसान हॉफ के मुताबिक, ‘‘अध्ययन से समझ आता है कि किसी भी शहर में रात के समय शोर का स्तर कम होता है. क्योंकि सभी लोग घर में रहते हैं. रात के मुकाबले दिन में शोर का स्तर बढ़ता है.


जियोफिजिसिस्ट सेलेस्ट लाबेज ने लॉस एंजिल्स के रोज के शोर-शराबे पर एक ग्राफ बनाया. इसमें जंगलों की वास्तविक ध्वनि को सुना. न्यूजीलैंड में सिसमोलॉजिस्ट ने हर्न बे सिसमोमीटर से ऑकलैंड में इंसानों द्वारा उत्पन्न सीसमिक साउंड' के स्तर में कमी देखी.


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