सुशील मोदी ने क्या कहा ऐसा कि बिहार की राजनीति में मचा है कोहराम?

बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों में लगे राजनीतिक दल.


पटना. बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी (Deputy Chief Minister Sushil Kumar Modi) के उस बयान ने बिहार की राजनीति में कोहराम मचा दिया है जिसमें सुशील मोदी ने 2020 के विधानसभा चुनाव को ऑनलाइन या डिजिटल चुनाव (Online or Digital Election) कराए जाने की संभावना जताई है. बिहार की तमाम सियासी पार्टियां आज के समय में इस ऑनलाइन वोटिंग के पक्ष में नहीं है. आरजेडी (RJD) जैसी पार्टियां, जिन्हें EVM पर भी ऐतराज है और जो अब भी चुनाव आयोग से बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग कर रही हैं, उन्होंने तो सुशील मोदी के इस बयान की ना सिर्फ कड़ी निंदा की है बल्कि अपनी मंशा भी खुलकर जाहिर कर दी है.

आरजेडी का कहना है कि उनकी पार्टी  गरीबों और पिछड़ों की लड़ाई लड़ती रही है. गांव के वो मतदाता जिन्हें न तो सही से पढ़ना-लिखना आता है और जिन बेचारों के पास मोबाइल फोन तक नसीब नहीं है,  वो भला स्मार्ट फोन और डिजिटल वोटिंग कैसे कर पाएंगे .ये बीजेपी की एक काल्पनिक सोच है जो वोटरों पर बेवजह थोपना चाहती है.

आरजेडी के नेता भाई वीरेंद्र कहते हैं कि बिहार में वैसे भी यह ऑनलाइन वोटिंग कभी संभव नहीं है. इस कोरोना त्रासदी के बीच डिजिटल इलेक्शन की बात करना हसुआ के ब्याह में खुर्पी के गीत के समान है. कुछ इसी तरह से कांग्रेस ने भी डिजिटल वोटिंग की मुख़ालिफ़त की है.कांग्रेस से एमएलसी प्रेमचंद मिश्रा कहते हैं कि दरअसल बीजेपी लोगों को गुमराह करने में लगी है.


यही नही विरोधियों के साथ जेडीयु भी खुलकर बीजेपी के इस ऑनलाइन फार्मूले को स्वीकार करने में कतरा रही है जेडीयू के एमएलसी और बिहार के सूचना प्रसारण मंत्री नीरज कुमार का कहना है कि यह पार्टी का शीर्ष नेतृत्व और चुनाव आयोग के फैसले पर निर्भर करता है.

ऑनलाइन चुनाव में है कानूनी अड़चनें

अब सवाल यह है कि चुनाव आयोग और कानून के मुताबिक क्या बिहार में ऑनलाइन चुनाव कराना वाकई संभव है. जैसे दूसरे देशों मसलन दक्षिण कोरिया में यह ऑनलाइन इलेक्शन संभव हुआ है. बिहार के पूर्व मुख्य निर्वाचन अधिकारी सुधीर कुमार राकेश का स्पष्ट तौर पर कहना है कि बिहार में ऑनलाइन वोटिंग कराना कतई संभव नहीं है. वो भी ऐसे आनन फानन में और केवल कोरोना को आधार बनाकर यह डिजिटल इलेक्शन कराने की बात कहना बिल्कुल गलत है.

वे कहते हैं  फिर एक्ट के मुताबिक भी यह बड़ा प्रयोग तभी संभव है जब सभी सातों स्टेक होल्डर्स इसके लिए पूरी तरह से तैयार हों. मसलन संसद, भारत सरकार, चुनाव आयोग, मतदाता, सियासी पार्टियां, मीडिया. इन सभी की रजामंदी पहले जरूरी है. जब तक मतदाता डिजिटल फ्रेंडली नहीं होंगे चुनाव आयोग इस तरह के प्रयोग कतई नहीं कर सकता.

चुनाव और चुनावी प्रक्रिया को बेहद नजदीक से जानने वाले सुधीर कुमार राकेश ने स्पष्ट कर दिया कि यह डिजिटल चुनाव तत्काल तो संभव नहीं है फिर भी सुशील मोदी के इस बयान के बाद बिहार की राजनीति में खलबली जरूर मची हुई है.

सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर किसकी कितनी है ताकत

जब बात डिजिटल चुनाव कराए जाने की हो रही है तो ऐसे में यह भी जानना बेहद जरूरी है कि बिहार की सियासी पार्टियों में किसकी कितनी ताकत या कितना वजूद है. देश के स्तर पर तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गृहमंत्री अमित शाह और कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी फॉलोअर्स के लिस्ट में बेस्ट ऑफ थ्री हैं, लेकिन बिहार के डिजिटल प्लेटफार्म पर लालू यादव-नीतीश कुमार दोनों में जोरदार टक्कर है. जबकि तेजस्वी डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी से कही आगे हैं.

तेजस्वी के पार्टी की कमान संभालने के बाद से आरजेडी में डिजिटल परिवर्तन हुआ बावजूद इसके पार्टी डिजिटल चुनाव के लिए तैयार नहीं है इसके पीछे असली वजह ये भी है कि सोशल मीडिया पर फॉलोअर्स और वोटर्स में बहुत बड़ा फर्क होता है. फॉलोअर्स कोई जरूरी नहीं कि वो बिहार का वोटर ही हो इसलिए कोई भी पार्टी इस ऑनलाइन इलेक्शन का जोखिम उठाने को तैयार नही है.

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