लॉकडाउन: राहुल गांधी का वार, पैकेज के नाम पर साहूकार न बने सरकार



सड़क पर चलने वाले भूखे लोगों को लोन नहीं पैसे चाहिए


सरकार को मां की तरह व्यवहार करना होगा


लाॉकडाउन ने कोरोना वायरस के प्रसार को तो रोका लेकिन इसके साथ ही कई सारी आर्थिक समस्याएं भी खड़ी हो गई हैं. ऐसे में सरकार के सामने लोगों को कोरोना महामारी और उनके आर्थिक नुकसान दोनों से निपटने की चुनौती है. पीएम नरेंद्र मोदी ने हाल ही में 20 लाख करोड़ रुपये के विशेष आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सरकार की मदद को किसानों, व्यापारियों और प्रवासी मजदूरों के लिए नाकाफी बताया है. उन्होंने कहा कि सरकार की मदद कर्ज का पैकेट नहीं होना चाहिए. किसान, प्रवासी मजदूरों की जेब में सीधा पैसा जाना चाहिए.

राहुल गांधी ने कहा, 'सड़क पर चलने वाले प्रवासी मजदूरों को कर्ज नहीं पैसे की जरूरत है. बच्चा जब रोता है तो मां उसे लोन नहीं देती, उसे चुप कराने का उपाय निकालती है, उसे ट्रीट देती है. सरकार को साहूकार नहीं, मां की तरह व्यवहार करना होगा.'

राहुल गांधी ने कहा कि अभी तूफान आया नहीं है, आने वाला है, देश को जबरदस्त आर्थिक नुकसान होने वाला है. इसमें सबको चोट लगेगी. अगर सरकार ने उन्हें पैसा नहीं दिया और मांग तेज नहीं हुई तो आगे बड़ा आर्थिक नुकसान हो सकता है. केंद्र के आर्थिक पैकेज में कर्ज की बात तो है लेकिन इससे मांग नहीं बढ़ेगी. प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि पैसा जनता की जेब तक जाए. मेरी मांग है कि सरकार एक बार फिर से इस पैकेज की समीक्षा करे.

उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों के लिए सरकार, विपक्ष और मीडिया सभी को मिलकर काम करना चाहिए. प्रभावित सभी लोगों के बैंक अकाउंट में सरकार को सीधे पैसे भेजना चाहिए.

राहुल गांधी ने सरकार के फैसले को लेकर कहा, 'कहा जा रहा है कि राजकोषीय घाटा बढ़ने की वजह से एजेंसियों की नजर में भारत की रेटिंग कम हो जाएगी. मेरा मानना है कि फिलहाल भारत के बारे में सोचिए, रेटिंग के बारे में नहीं. भारत के सभी लोग अगर ठीक रहेंगे तो एक बार फिर से मिलकर काम करेंगे और रेटिंग अपने आप ठीक हो जाएगा.'

उन्होंने कहा कि लॉकडाउन को हमें धीरे-धीरे समझदारी से उठाना होगा. क्योंकि यह हमारे सभी समस्याओं का समाधान नहीं है. हमें बुजुर्गों, बच्चों सभी का ख्याल रखते हुए धीरे-धीरे लॉकडाउन उठाने के बारे में सोचना होगा. जिससे कि किसी को कोई खतरा ना हो.

राहुल गांधी अगर प्रधानमंत्री होते तो वो क्या करते? इस सवाल के जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि मैं प्रधानमंत्री नहीं हूं. लेकिन एक विपक्ष के नेता के तौर पर कहूंगा कि कोई भी आदमी घर छोड़कर दूसरे राज्य में जाता है तो काम की तलाश में जाता है. इसलिए सरकार को रोजगार के मुद्दे पर एक राष्ट्रीय रणनीति बनानी चाहिए.

राहुल ने कहा कि मेरे हिसाब से सरकार को तीन टर्म शॉट, मिड और लॉन्ग टर्म में काम करना चाहिए. शॉर्ट टर्म में डिमांड बढ़ाइए. इसके तहत आप हिंदुस्तान के छोटे और मंझोले व्यापारियों को बचाइए. इन्हें रोजगार दीजिए. आर्थिक मदद कीजिए. स्वास्थ्य के हिसाब से आप उन लोगों का ख्याल रखिए जिन्हें सबसे ज्यादा खतरा है. वहीं मिड टर्म में छोटे और मझोले व्यापार को मदद कीजिए. हिंदुस्तान को 40 प्रतिशत रोजगार इन्हीं लोगों से मिलता है इसलिए इनकी आर्थिक मदद भी करनी चाहिए. बिहार जैसे प्रदेशों में ही रोजगार बढ़ाने पर ही ध्यान दीजिए.

मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) को लेकर राहुल गांधी ने सुझाव देते हुए कहा, 'दस साल पहले का भारत और आज का हिंदुस्तान दोनों अलग-अलग है. आज बहुत सारे मजदूर शहरों में रहते हैं. इसलिए मेरा विचार है कि गांव में इनकी सुरक्षा के लिए मनरेगा और शहर में Nyay (न्यूनतम आय योजना) योजना होनी चाहिए. जिससे कि इनके बैंक अकाउंट में कुछ पैसा भेजा जा सके. सरकार चाहे तो न्याय योजना को कुछ समय के लिए लागू करके देख सकती है.'

कांग्रेस नेता ने कहा कि इस वक्‍त सबसे बड़ी जरूरत डिमांड-सप्‍लाई को शुरू करने की है. उन्‍होंने कहा कि आपको गाड़ी चलाने के लिए तेल की जरूरत होती है. जबतक आप कार्बोरेटर में तेल नहीं डालेंगे, गाड़ी स्‍टार्ट नहीं होगी. मुझे डर है कि जब इंजन शुरू होगा तो कहीं तेल नहीं होने की वजह से गाड़ी ही नहीं चले.

राहुल गांधी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि मेडिकल टेस्ट ठीक से हुआ या नहीं हुआ, इस बारे में तीन चार महीने बाद भी बात हो सकती है. फिलहाल हमें हालात में तेजी से सुधार करने पर ध्यान देना होगा. अब तक जो हुआ सो हुआ. आगे के आर्थिक सुधारों को लेकर तेजी से निर्णय लेना होगा. सरकार को भी इसी दिशा में लोगों की मदद के लिए कार्य करना चाहिए.

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