कोरोना के कहर के बीच 21 जून को खत्म हो जाएगी हमारी दुनिया, जानिए कैसे



कोरोना वायरस महासंकट के बीच 21 जून को यह दुनिया खत्‍म हो जाएगी। कोरोना महासंकट के बावजूद अभी सबसे खराब समय आना बाकी है। इस ताजा दावे के बाद कई लोग डरे हुए हैं। दुनिया के खात्‍मे का यह दावा इस बात पर आधारित है कि ग्रेगोरिअन कैलेंडर को वर्ष 1582 में लागू किया गया था। उस समय साल से 11 दिन कम हो गए थे। ये 11 दिन सुनने में तो बहुत कम लगते हैं कि लेकिन 286 साल में यह लगातार बढ़ता गया है। दुनियाभर में चल रही साजिशों पर नजर रखने वाले कुछ लोगों का दावा है कि हमें वर्ष 2012 में होना चाहिए। इस दावे को वैज्ञानिक पाओलो तगलोगुइन के एक ट्वीट से और ज्‍यादा बल मिला है।

वैज्ञानिक पाओलो तगलोगुइन ने कहा कि जुलियन कैलेंडर को अगर फॉलो करें तो हम तकनीकी रूप से वर्ष 2012 में हैं। ग्रेगोरिअन कैलेंडर में जाने से हमें एक साल में 11 दिनों का नुकसान हुआ। ग्रेगोरिअन कैलेंडर को लागू हुए 268 साल (1752-2020) बीत चुके हैं। इस तरह से अगर 11 से गुणा करें तो 2948 दिन होते हैं। 2948 दिन बराबर 8 साल होते हैं। हालांकि बाद में वैज्ञानिक पाओलो ने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया।

वैज्ञानिक पाओलो के ट्वीट के बाद अब लोगों का कहना है कि 21 जून 2020 दरअसल, 21 दिसंबर, 2012 है। बता दें कि वर्ष 2012 में भी इस तरह के दावे किए गए थे कि 21 दिसंबर को दुनिया का अंत हो जाएगा। दरअसल, इस पूरे दावे की शुरुआत उस दावे से हुई जिसमें कहा जा रहा था कि सुमेरिअन लोगों ने एक ग्रह नीबीरु की खोज की थी। निबिरू ग्रह अब पृथ्‍वी की ओर बढ़ रहा है। सबसे पहले दावा किया गया था कि मई 2003 में दुनिया का खात्‍मा हो जाएगा, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो इसकी डेट बढ़ाकर 21 दिसंबर 2012 कर दी गई।

दुनियाभर में साजिश करने वालों का दावा है कि वर्ष 2020 में पृथ्‍वी पर महामारी आई है, जंगलों में आग लगी है और टिड्ड‍ियों का हमला हुआ है, लेकिन अभी और ज्‍यादा विनाशलीला अभी बाकी है। उधर, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का कहना है कि इस दावे का कोई विश्‍वसनीय वैज्ञानिक आधार नहीं है। इस तरह के दावे के केवल फिल्‍मों, किताबों और इंटरनेट चल रहे हैं।

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