चीन क्यों ले जा रहा है सिवाना का पत्थर, दे रहा है करोड़ों रुपए



सिवाना से चीन जा रहा है पत्थर, 22 लाख में बिक रही एक शिला 
- कांडला बंदरगाह से जाता है पत्थर


बिकते तो पत्थर भी है, बेचने वाला चाहिए। यह तथ्य सिवाना के फूलण व राखी के निकट के पत्थर को लेकर सही साबित हो रही है। जालौर और जयपुर तक पहुंच रखने वा सिवाना क्षेत्र की पहाडिय़ों का ग्रेनाइट पत्थर अब चीन तक पहुंच गया है। एक पत्थर की 200 मीटर की शिला के करीब 22 लाख रुपए मिल रहे है। कांडला बंदरगाह के जरिए यह शिला जब चीन पहुंचती है तो करोड़ रुपए के पार की हो जाती है। 
सिवाना से जालौर तक अरावली पर्वत श्रृंखला का इलाका है। इस इलाके के पत्त्थर में गे्रनाइट है। यह ग्रेनाइट मार्बल का विकल्प है और इससे सस्ता भी। काले, भूरे और लाल रंग के इस ग्रेनाइट की चमक के कारण जयपुर, जालौर व गुजरात के शहरों में तो पहुंच हुई है साथ ही चीन में भी पत्थर पहुंचने लगा है। पत्थर की बड़ी-बड़ी शिलाएं निकालकर इनको एक ट्रक में लादकर ले जाया जाता है।
एक मीटर पत्थर के करीब 22 हजार रुपए मिलते है बड़ी शिला यानि एक ब्लाक 22 से 25 लाख का होता है जो 200 मीटर से ज्यादा रहता है। कांडला बंदरगाह से चीन इन बड़ी शिलाओं को यहां कार्य करने वाली माइन्स से जुड़े लोग जालौर तक पहुंचा रहे है। जहां चीन के खरीददार पहुंचकर इसको कांडला बंदरगाह से चीन ले जाते है। पूरी शिला जहाज में लदकर जाती है।
इधर रसोई -टॉयलेट में लग रहा है पत्थर
स्थानीय स्तर पर जालौर और सिवाना का ग्रेनाइट काला,लाल और चमकदार होने से इसको मार्बल के विकल्प में उपयोग किया जाता है। इसको रसोई, टॉयलेट, आंगन और सीढिय़ों में पत्थर के लिए ही उपयोग में लिया जा रहा है। 
चीन जाता है पत्थर 
यहां का पत्थर चीन जा रहा है । जहां इसकी कीमत बहुत मिल रही है। पत्थर के इस व्यापार को लेकर सरकार प्रोत्साहन दे तो लोगों को बड़ा रोजगार प्राप्त हो सकता है। - लादूराम विश्नोई, पूर्व सरपंच सांवरड़ा
पत्थर व खनिज को लेकर आत्मनिर्भरता की स्थिति सिवाना इलाके में है। इस इलाके का पत्थर चीन व देश में पहुंच रहा है। रोजगार के साधन स्थानीय स्तर पर भी बढ़ाए जाने की जरूरत है। 

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