दुनिया से हथियार खरीदने वाला भारत कैसे बेचेगा आकाश मिसाइल




भारत और चीन में से किसके पास ज़्यादा परमाणु हथियार हैं?

केंद्र सरकार ने बीते बुधवार ज़मीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल आकाश को भारत के साथ दोस्ताना संबंध रखने वाले देशों को निर्यात करने की मंज़ूरी दे दी है.

इसके लिए रक्षा मंत्री की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई है जिससे रक्षा संबंधित निर्यात को त्वरित मंजूरी मिल सके.

'आकाश' एक सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल है, जिसकी मारक क्षमता 25 किलोमीटर तक है. इस मिसाइल को भारतीय वायुसेना में साल 2014 में शामिल किया गया था. इसके एक साल बाद 2015 में इस मिसाइल को भारतीय थलसेना में शामिल किया गया था.

रक्षा मंत्रालय के मुताबिक़, पिछले कुछ सालों में आयोजित हुए अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनों, डिफेंस एक्सपो और एयरो इंडिया के दौरान कुछ मित्र देशों ने आकाश मिसाइल में रुचि दिखाई थी. इसके साथ ही तटीय निगरानी प्रणाली, रडार और एयर प्लेटफार्मों में भी रुचि दिखाई जा रही है.

लेकिन सवाल ये उठता है कि भारत इस मिसाइल को निर्यात करने की ओर कदम क्यों बढ़ा रहा है?

क्यों ख़ास है ये मिसाइल?

'आकाश' एक ज़मीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल है जो 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लक्ष्य को भेदने की क्षमता रखती है. इसके साथ ही ये 95 फीसदी तक भारत में निर्मित मिसाइल है जो लगभग 25 सालों में बनकर तैयार हुई है.

सरकार की ओर से जारी सूचना में इस बात का ज़िक्र नहीं है कि सरकार किन देशों को ये मिसाइल बेचने जा रही है.

हालांकि, सरकार ने ये ज़रूर कहा है कि आकाश मिसाइल को ‘मित्र देशों’ को बेचा जाएगा. इसके साथ ही निर्यात की जाने वाली मिसाइल उस मिसाइल से भिन्न होगी जो कि भारतीय वायु सेना और भारतीय सेना के पास है.

रक्षा विशेषज्ञ राहुल बेदी मानते हैं कि ये मिसाइल वियतनाम से लेकर थाईलैंड जैसे मुल्कों को बेची जा सकती है.

वे कहते हैं, "मोदी सरकार साल 2016 से मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व एशिया और लातिन अमेरिकी देशों में आकाश और ब्रह्मोस दोनों मिसाइलों को निर्यात करने की बात कर रही है. और सरकार ये मिसाइल उन देशों को बेचेगी जिनके साथ भारत के रिश्ते बेहतर हैं. 2016 और 2017 में भी ये मिसाइल वियतनाम को बेचे जाने की बात हो चुकी है. इस मिसाइल की रेंज 25 किलोमीटर है और ये इनकमिंग हेलिकॉप्टर, फाइटर प्लेन, और कुछ मिसाइल सिस्टम को ख़त्म कर सकती है."

क्या डिफेंस एक्सपोर्टर बनने के लिए तैयार है भारत?

केंद्र सरकार ने साल 2024 तक डिफेंस एक्सपोर्ट की इंडस्ट्री में 5 बिलियन डॉलर का लक्ष्य छूना तय किया है. लेकिन दुनिया भर में भारत को हथियारों के आयातक देश के रूप में जाना जाता है.

राहुल बेदी मानते हैं कि पिछले छह–आठ महीनों में चीन के साथ जो तनाव पैदा हुआ है, उसमें हमारा डिफेंस प्रॉडक्शन अपनी ही ज़रूरतें पूरी नहीं कर रहा है.

वे कहते हैं, "हम असलहे, गोला-बारूद और मिसाइल सिस्टम आयात कर रहे हैं. ऐसे समय पर निर्यात की बात करना, मुझे थोड़ा ज़्यादती लगती है. क्योंकि हमारी घरेलू ज़रूरतें भी पूरी नहीं हो रही हैं. ऐसे में निर्यात की बात कैसे की जा सकती है?"

दुनिया भर में हथियारों की खरीद-बिक्री पर नज़र रखने वाले थिंक टैंक स्टॉकहॉम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2015 से 2019 के बीच भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक देश था.

इसके साथ ही रक्षा उपकरणों का आयात और निर्यात उपकरणों से ज़्यादा भू राजनीतिक स्थितियों, शक्ति संतुलन, निर्यातक और आयातक देश की आंतरिक राजनीति एवं वैश्विक ताकतों पर निर्भर करता है.

दुनिया के बड़े हथियार निर्यातक देशों में एक ख़ास तरह का माहौल है जो हथियारों के निर्यात के लिए मुफीद साबित होता है.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत उस इको-सिस्टम को तैयार कर सकता है जो कि भारत को बड़े हथियार निर्यातकों के बीच खड़ा कर सके.

बड़े लक्ष्य की ओर पहला कदम

रक्षा मामलों के विशेषज्ञ और सोसाइटी फॉर पॉलिसी स्टडीज़ के निदेशक सी. उदय भास्कर मानते हैं कि आकाश मिसाइल को निर्यात करने की सहमति दिया जाना एक बड़े लक्ष्य की ओर शुरुआती कदम है.

वे कहते हैं, "मिसाइल निर्यात व्यापार एक जटिल क्षेत्र है. हमने पहला कदम बढ़ाया है. अब देखना ये होगा कि कितने देश भारत की आकाश मिसाइल को खरीदने के लिए तैयार होंगे. क्योंकि डिफेंस एक्सपोर्ट के लिए एक बहुत ही ख़ास तरह के स्किल सेट की ज़रूरत होती है. और भारत ने अब तक अपनी मिसाइलों, तोपों, एयरक्राफ़्ट, हेलिकॉप्टरों और बंदूकों से वो स्किल सेट साबित नहीं किया है."

"भारत पर कई सारी पाबंदियां हैं और कुछ कमियां भी हैं. उदाहरण के लिए, भारत ने इक्वाडोर को कुछ हेलिकॉप्टर बेचे थे. लेकिन हम उसकी आफ़्टर सेल्स सर्विस ठीक ढंग से नहीं कर पाए. और वो कॉन्ट्रेक्ट आगे नहीं बढ़ पाया. वरना अगर भारत एक अच्छे प्रोडक्ट को उस बाज़ार में ले जाता, जहां ज़रूरत है. और आपके खरीददार आपसे काफ़ी संतुष्ट हैं. तो धीरे-धीरे भारत का प्रोडक्ट पूरे दक्षिण अमरीका में फैलना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया."

"इसका मतलब ये है कि या तो आपका प्रोडक्ट ठीक नहीं है, या उसकी कीमत ठीक नहीं है. या आपने तीस सालों की आफ़्टर सेल्स सर्विस के लिए ज़रूरी उपकरण या इको-सिस्टम नहीं बनाया है. ऐसे में इस वजह से फिलहाल जो कदम उठाया गया है, उसे एक शुरुआत भर कहा जा सकता है."

लेकिन भारत सरकार ने 2024 तक इंडियन वेपन एक्सपोर्ट को 5 बिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा है.



यूरोप से क्या सीख सकता है भारत?

भारत एक ऐसे समय में हथियारों के निर्यात क्षेत्र में कदम रख रहा है जब परंपरागत हथियारों के बाज़ार पर अमरीका, रूस, चीन और इसराइल का एकाधिकार है. और भारत को इस बाज़ार में खड़ा करने के लिए इन मुल्कों के रुतबे, सामरिक क्षमता और अनुभव से टक्कर लेनी होगी.

लेकिन ये वो समय भी है जब दुनिया भर में युद्ध लड़ने का तरीका तेजी से बदल रहा है.

पारंपरिक युद्धों में ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है. और कई छोटे छोटे यूरोपीय देश इस दिशा में काम करके वैश्विक स्तर के निर्यातक के रूप में खुद को खड़ा कर रहे हैं.

ऐसे में सवाल उठता है कि भारत अपना डिफेंस एक्सपोर्ट बढ़ाने के लिए परंपरागत युद्ध के हथियार की तरफ बढ़ता है या भारत अपनी सॉफ़्टवेयर की क्षमता का इस्तेमाल करके अत्याधुनिक हथियारों और उनके रोकने के लिए सॉफ़्टवेयर आधारित सिस्टमों को तैयार करता है.

उदय भास्कर कहते हैं, "आप चाहें मिसाइल बनाएं या हेलिकॉप्टर बनाएं, आपके प्रॉडक्ट पर दुनिया को भरोसा होना चाहिए. हमारे पास यही दिक्कत है. हमारे पास कोई एक ऐसा प्रॉडक्ट नहीं है जिसे विश्वस्तरीय कहा जा सके. हालांकि, कई सारे प्रॉडक्ट अभी पाइपलाइन में हैं."

"हमारे देश में अब तक वो इको-सिस्टम नहीं बना है जिसमें हथियारों की डिज़ाइन, बिक्री और सर्विस शामिल हो. प्रयास जारी हैं, लेकिन हमसे आगे छोटे छोटे देशों ने खुद को ख़ास तकनीकों में स्थापित कर लिया है. पूर्वी यूरोप के कई देश जिनमें चेक स्लोवाक शामिल हैं जो कि एक एक प्रॉडक्ट को विकसित करके दुनिया में नंबर एक बन गए हैं. भारत को भी इसी दिशा में काम करना चाहिए."


बेहद चतुराई की ज़रूरत

उदय भास्कर मानते हैं कि इस समय भारत के लिए ये समझना ज़रूरी है कि अपनी विशेष स्थिति में उसके लिए सबसे ज़्यादा बेहतरीन दाँव क्या होगा.

वे कहते हैं, "हमें ये समझने की ज़रूरत है कि पब्लिक सेक्टर यूनिट के सिस्टम में निर्यात लायक उत्पाद बनाना थोड़ा मुश्किल है. एक समय में एयर इंडिया को दुनिया की बेहतरीन एयरलाइन कंपनी माना जाता था लेकिन आज उसके विनिवेश की बात हो रही है."

"और जब आप डिफेंस एक्सपोर्ट की बात करते हैं तो आपको अमरीका और दूसरे देशों में फाइटर प्लेन बनाने वाली कंपनियों जैसे कि बोइंग आदि की तरह मजबूत मार्केटिंग, सेल्स पिच और सेलिंग फोर्स होना चाहिए. इन कंपनियों को ये जगह हासिल करने में बहुत पैसा और दशकों खर्च करने पड़े हैं."

"ऐसे में भारत को बहुत चतुराई और परिपक्वता के साथ देखना है कि वो कौन से प्रॉडक्ट हैं जहां भारत को बढ़त मिल सकती है. उदाहरण के लिए, कंट्रोल सिस्टम बनाने की क्षमता भारत में काफ़ी ज़्यादा है. इससे आगे बढ़कर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और फाइव जी जैसे क्षेत्रों में जाने की ज़रूरत है. हमारे इंजीनियर्स जो कि आईआईटी से पढ़कर निकलते हैं लेकिन विश्व की बड़ी बड़ी कंपनियों में जाकर डिज़ाइन करते हैं. लेकिन इसका लाभ भारत को नहीं मिलता है. विडंबना ये है कि इन बड़ी कंपनियों की आर एंड डी लैब्स भी भारत में ही हैं, कोई बंगलुरू में है तो कोई हैदराबाद में है. ऐसे में हमें इस तरह के इको सिस्टम का विकास करना चाहिए."

"आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्र में हमें पहल करने वाले देश के रूप में फ़ायदा मिल सकता है. चाहें ड्रोन हो जो कि एक नयी तकनीक है. या इससे आगे बढ़कर ड्रोन के डिसरप्शन पर काम करना चाहिए. क्योंकि हर तकनीक को मात देने वाली तकनीक सामने आती ही है. यहां भारत बेहतर कर सकता है लेकिन इन क्षेत्रों में खुद को खड़ा करने के लिए आपको मानव संसाधन की ज़रूरत होगी. तो जब आप आज शुरू करेंगे तब जाकर आठ – दस सालों में हमारे पास वो क्षमता होगी जिसे निर्यात किया जा सके."

लेकिन एक सवाल है जिसका जवाब सिर्फ भारत सरकार दे सकती है कि वह डिफेंस एक्सपोर्ट में प्रवेश करने की सामरिक दृढ़ता दिखा पाएगी या आंतरिक राजनीतिक ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए फैसले लेती रहेगी.

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