हालात पटरी पर लाना कितनी बड़ी चुनौती है, यह आजकल ट्रेनों की बुकिंग देखकर भी समझा जा सकता है



श्रमिक ट्रेन में चढ़ने का इंतजार करता एक परिवार | रॉयटर्स


कोरोना वायरस के चलते घोषित करीब दो महीने लंबा लॉकडाउन अब चरणबद्ध तरीके से हटने लगा है. इसके बाद जोर जल्द से जल्द औद्योगिक गतिविधियों को तेजी से बहाल करने पर है. उद्योग जगत को अपने संदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसका जिक्र कर चुके हैं. लेकिन जिस तरह से लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूर शहरों से अपने घरों को लौटे हैं उसे देखते इसे एक बड़ी चुनौती माना जा रहा है.


हाल में प्रवासी मजदूरों के मामले में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि अभी तक ट्रेनों से 57 लाख और बसों से 41 लाख मजदूरों को उनके गृह-राज्य वापस भेजा गया है. कई अनुमानों के मुताबिक अभी भी मजदूरों की एक बड़ी आबादी है जो या तो रास्तों या फिर शहरों में ही फंसी है और वापस लौटना चाहती है. साफ है कि औद्योगिक गतिविधियों को पटरी पर लाना बड़ी चुनौती होने जा रहा है.


इसका एक संकेत ट्रेनों की बुकिंग के पैटर्न से मिलता है. द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई या सूरत जैसे औद्योगिक केंद्रों से जो ट्रेनें उत्तर प्रदेश, बिहार या प. बंगाल जा रही हैं वे ठसाठस भरी हैं. लेकिन जब यही ट्रेनें वापस आ रही हैं तो उनमें एक तिहाई मुसाफिर भी नहीं होते.


उदाहरण के लिए कुछ दिन पहले मुंबई के बांद्रा स्टेशन से उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के लिए चली ट्रेन की सीटों के लिए 130 फीसदी बुकिंग थी. उधर, इसी हफ्ते गोरखपुर, हावड़ा, दरभंगा, पटना या जयपुर जैसे शहरों से मुंबई के लिए आने वाली ट्रेनों को देखें तो उनमें औसतन 30 फीसदी सीटें ही भरी थीं. इसी तरह कुछ दिन पहले पुणे से दानापुर (पटना) गई एक ट्रेन में क्षमता से 10 फीसदी ज्यादा यात्री थे. लेकिन जब यही ट्रेन वापस आई तो इसकी महज 39 फीसदी सीटें भरी थीं. यही वजह है कि इन दिनों छोटे शहरों से मुंबई या दिल्ली आने वाली ट्रेनों के लिए तो टिकट आसानी से मिल जा रहा है, लेकिन इन शहरों को जाने वाली ट्रेनों के लिए लंबी वेटिंग चल रही है.


उधर, कई शहरों में मजदूरों का टोटा देखते हुए कारोबारी अब उनके लिए ऐसी-ऐसी सुविधाएं देने को तैयार हैं जिनके बारे में पहले सोचा भी नहीं जा सकता था. जैसे बीते दिनों खबर आई कि हैदराबाद के कई बिल्डर इन मजदूरों को हवाई जहाज से वापस बुला रहे हैं. वे पटना, लखनऊ और रांची जैसे शहरों से मजदूरों के लिए टिकट बुक कर रहे हैं. इसके लिए प्रति मजदूर उन्हें पांच हजार रु तक खर्च करने पड़ रहे हैं, लेकिन वे तैयार हैं.


हैदराबाद के रियल एस्टेट समूह प्रेस्टीज ग्रुप से जुड़े आर सुरेश कुमार द टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहते हैं, ‘यह संकट का समय है इसलिए मजदूरों को वापस बुलाने के लिए हमें पैसा खर्च करना ही होगा.’ उनकी कंपनी ने छह जून को पटना से 10 कारपेंटरों को फ्लाइट के जरिये बुलवाया है. बिल्डर मजदूरों को एडवांस रकम देने को भी तैयार हैं.


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